संधिआ वेले का हुक्मनामा – 3 मई 2024
सोरठि महला ५ पंचपदा ॥ बिनसै मोहु मेरा अरु तेरा बिनसै अपनी धारी ॥१॥ संतहु इहा बतावहु कारी ॥ जितु हउमै गरबु निवारी ॥१॥ रहाउ ॥ सरब भूत पारब्रहमु करि मानिआ होवां सगल रेनारी ॥२॥ पेखिओ प्रभ जीउ अपुनै संगे चूकै भीति भ्रमारी ॥३॥ अउखधु नामु निरमल जलु अम्रितु पाईऐ गुरू दुआरी ॥४॥ कहु नानक जिसु मसतकि लिखिआ तिसु गुर मिलि रोग बिदारी ॥५॥१७॥२८॥
अर्थ हिंदी: हे संत जनो! (मुझे कोई) ऐसा इलाज बताओ, जिससे मैं (अपने अंदर से) अहंकार को दूर कर सकूँ। रहाउ। (जिस इलाज से मेरे अंदर से) मोह का नाश हो जाए, मेर-तेर वाला भेदभाव दूर हो जाए, मेरी माया से पकड़ खत्म हो जाए।1। (जिस उपचार से) परमात्मा सभी जीवों में बसा हुआ माना जा सके, और, मैं सभी के चरणों की धूड़ बना रहूँ।2। (जिस इलाज से) परमात्मा अपने अंग-संग देखा जा सके, और (मेरे अंदर से) माया की खातिर भटकने वाली दीवार दूर हो जाए (जो परमात्मा से दूरियां डाले हुए है)।3। (हे भाई!) वह दवा तो परमात्मा का नाम ही है, आत्मिक जीवन देने वाला पवित्र नाम-जल ही है। ये नाम गुरू के दर से मिलता है।4। हे नानक! कह– जिस मनुष्य के माथे पर (नाम की प्राप्ति का लेख) लिखा हो, (उसे नाम गुरू से मिलता है और), गुरू को मिल के उसके रोग काटे जाते हैं।5।17।28।
WaheGuruJi Ka Khalsa WaheGuruJi Ki Fateh