संधिआ वेले का हुक्मनामा – 19 अप्रैल 2024
टोडी महला ५ ॥ गरबि गहिलड़ो मूड़ड़ो हीओ रे ॥ हीओ महराज री माइओ ॥ डीहर निआई मोहि फाकिओ रे ॥ रहाउ ॥ घणो घणो घणो सद लोड़ै बिनु लहणे कैठै पाइओ रे ॥ महराज रो गाथु वाहू सिउ लुभड़िओ निहभागड़ो भाहि संजोइओ रे ॥१॥ सुणि मन सीख साधू जन सगलो थारे सगले प्राछत मिटिओ रे ॥ जा को लहणो महराज री गाठड़ीओ जन नानक गरभासि न पउड़िओ रे ॥२॥२॥१९॥ {पन्ना 715}
अर्थ: हे भाई! मूर्ख हृदय अहंकार में झल्ला हुआ रहता है। इस दिल को महाराज (प्रभू) की माया ने मछली की तरह मोह में फसा रखा है (जैसे मछली को कुण्डी में)। रहाउ।
हे भाई! (मोह में फंसा हुआ हृदय) सदा बहुत-बहुत (माया) मांगता रहता है, पर बिना भाग्यों के कहाँ मिलती है? हे भाई! महाराज का (दिया हुआ) ये शरीर है, इसी के साथ (मूर्ख जीव) मोह करता रहता है। भाग्यहीन मनुष्य (अपने मन को तृष्णा की) आग से जोड़े रखता है।1।
हे मन! सारे साधु-जनों की शिक्षा को सुना कर, (इसकी बरकति से) तेरे सारे पाप मिट जाएंगे। हे दास नानक! (कह–) महाराज के खजाने में से जिसके भाग्यों में कुछ प्राप्ति लिखी हुई है, वह जूनियों में नहीं पड़ता।2।2।19।