अमृत वेले का हुक्मनामा – 24 मार्च 2024
धनासरी महला ४ ॥ हरि हरि बूंद भए हरि सुआमी हम चात्रिक बिलल बिललाती ॥ हरि हरि क्रिपा करहु प्रभ अपनी मुखि देवहु हरि निमखाती ॥१॥ हरि बिनु रहि न सकउ इक राती ॥ जिउ बिनु अमलै अमली मरि जाई है तिउ हरि बिनु हम मरि जाती ॥ रहाउ ॥ तुम हरि सरवर अति अगाह हम लहि न सकहि अंतु माती ॥ तू परै परै अपर्मपरु सुआमी मिति जानहु आपन गाती ॥२॥ हरि के संत जना हरि जपिओ गुर रंगि चलूलै राती ॥ हरि हरि भगति बनी अति सोभा हरि जपिओ ऊतम पाती ॥३॥ आपे ठाकुरु आपे सेवकु आपि बनावै भाती ॥ नानकु जनु तुमरी सरणाई हरि राखहु लाज भगाती ॥४॥५॥
अर्थ: हे हरी! हे स्वामी! मैं पपीहा तेरे नाम-बूँद के लिए तड़प रहा हूँ। (मेहर कर), तेरा नाम मेरे लिए जीवन बूँद बन जाए। हे हरी! हे प्रभू! अपनी मेहर कर, आँख के झपकने जितने समय के लिए ही मेरे मुख में (अपने नाम की शांति) की बूँद पा दे ॥१॥ हे भाई! परमात्मा के नाम के बिना मैं पल भर के लिए भी नहीं रह सकता। जैसे (अफीम आदि) के नशे के बिना अमली (नशे का आदी) मनुष्य नहीं रह सकता, तड़प उठता है, उसी प्रकार परमात्मा के नाम के बिना मैं घबरा जाता हूँ ॥ रहाउ ॥ हे प्रभू! तूँ (गुणों का) बड़ा ही गहरा समुँद्र हैं, हम तेरी गहराई का अंत थोड़ा भर भी नहीं ढूंढ सकते। तूँ परे से परे हैं, तूँ बेअंत हैं। हे स्वामी! तूँ किस तरह का हैं कितना बड़ा हैं-यह भेद तूँ आप ही जानता हैं ॥२॥ हे भाई! परमात्मा के जिन संत जनों ने परमात्मा का नाम सिमरिया, वह गुरू के (बख़्से हुए) गहरे प्रेम-रंग में रंगे गए, उनके अंदर परमात्मा की भगती का रंग बन गया, उन को (लोक परलोक में) बड़ी शोभा मिली। जिन्होंने प्रभू का नाम सिमरिया, उन को उत्तम इज़्जत प्राप्त हुई ॥३॥ पर, हे भाई! भगती करने की योजना प्रभू आप ही बनाता है, वह आप ही मालिक है आप ही सेवक है। हे प्रभू! तेरा दास नानक तेरी शरण आया है। तूँ आप ही अपने भगतों की इज्ज़त रखता हैं ॥४॥५॥