अमृत वेले का हुक्मनामा – 21 मार्च 2024
बिलावलु महला ५ ॥ राखि लीए अपने जन आप ॥ करि किरपा हरि हरि नामु दीनो बिनसि गए सभ सोग संताप ॥१॥ रहाउ॥ गुण गोविंद गावहु सभि हरि जन राग रतन रसना आलाप ॥ कोटि जनम की त्रिसना निवरी राम रसाइणि आतम ध्राप ॥१॥ चरण गहे सरणि सुखदाते गुर कै बचनि जपे हरि जाप॥ सागर तरे भरम भै बिनसे कहु नानक ठाकुर परताप ॥२॥५॥८५॥
अर्थ :-हे भाई! परमात्मा ने आपने सेवकों की सदा ही रक्षा की है। कृपा कर के (आपने सेवकों को) आपने नाम की दाति देता आया है (जिन को नाम की दाति बख्शता है उन के) सारे चिंता-फिकर और दु:ख-कलेश नास हो जाते हैं।१।रहाउ। हे संत जनो! सारे (मिल के) भगवान के गुण गाते रहा करो, जिव्हा के साथ सुंदर रागाँ के द्वारा उस के गुणों का उचारण करते रहा करो। (जो मनुख भगवान के गुणों का उचारन करते हैं, उन की) करोड़ों जन्मों की (माया की) त्रिशना दूर हो जाती है, सब रसों से श्रेष्ठ नाम-रस की बरकत के साथ उन का मन तृप्त हो जाता है।१। हे भाई! जो मनुख सुखाँ के देने वाले भगवान के चरण पकड़ी रखते हैं, सुखदाते भगवान की शरण पड़े रहते हैं,गुरु के उपदेश के द्वारा भगवान के नाम का जाप जपते रहते हैं, वह संसार-सागर से पार निकल जाते हैं, उन के सारे फिक्र भ्रम नास हो जाते हैं। हे नानक! बोल-यह सारी प्रशंसा स्वामी-भगवान की ही है।२।५।८५।