संधिआ वेले का हुक्मनामा – 1 फरवरी 2024
सोरठि महला ५ ॥ नालि नराइणु मेरै ॥ जमदूतु न आवै नेरै ॥ कंठि लाइ प्रभ राखै ॥ सतिगुर की सचु साखै ॥१॥ गुरि पूरै पूरी कीती ॥ दुसमन मारि विडारे सगले दास कउ सुमति दीती ॥१॥ रहाउ ॥ प्रभि सगले थान वसाए ॥ सुखि सांदि फिरि आए ॥ नानक प्रभ सरणाए ॥ जिनि सगले रोग मिटाए ॥२॥२४॥८८॥
अर्थ :-हे भाई ! जिस मनुख को पूरे गुरु ने (जीवन में) सफलता बख्शी, भगवान ने (कामादिक उस के) सारे ही वैरी मार मुकाए; और, उस सेवक को (नाम सुमिरन की) श्रेष्ठ अकल दे दी ।1 ।रहाउ । हे भाई ! परमात्मा मेरे साथ (मेरे हृदय में वश रहा) है । (उस की बरकत के साथ) जमदूत मेरे करीब नहीं ढुकदा (मुझे मौत का, आत्मिक मौत का खतरा नहीं रहा) । हे भाई ! सुमिरन की सिख मिल जाती है, भगवान उस मनुख को आपने गल के साथ ला। (हे भाई ! जिन मनुष्यों को गुरु ने जीवन-सफलता बख्शी) भगवान ने उन के सारे ज्ञान-इंद्रे जीवन-सफलता बख्शी) भगवान ने उन के सारे ज्ञान-इंद्रे जतीवन-बहखलकम (बहखलकम) तरफ से) परत के आत्मिक आनंद में आ टिके । हे नानक ! उस भगवान की शरण पड़ा रह, जिस ने (शरण आए के) सारे रोग दूर कर दिये ।2।