अमृत वेले का हुक्मनामा – 18 जनवरी 2024
धनासरी महला ५ ॥ मोहि मसकीन प्रभु नामु अधारु ॥ खाटण कउ हरि हरि रोजगारु ॥ संचण कउ हरि एको नामु ॥ हलति पलति ता कै आवै काम ॥१॥ नामि रते प्रभ रंगि अपार ॥ साध गावहि गुण एक निरंकार ॥ रहाउ ॥ साध की सोभा अति मसकीनी ॥ संत वडाई हरि जसु चीनी ॥ अनदु संतन कै भगति गोविंद ॥ सूखु संतन कै बिनसी चिंद ॥२॥ जह साध संतन होवहि इकत्र ॥ तह हरि जसु गावहि नाद कवित ॥ साध सभा महि अनद बिस्राम ॥ उन संगु सो पाए जिसु मसतकि कराम ॥३॥ दुइ कर जोड़ि करी अरदासि ॥ चरन पखारि कहां गुणतास ॥ प्रभ दइआल किरपाल हजूरि ॥ नानकु जीवै संता धूरि ॥४॥२॥२३॥
अर्थ: हे भाई! मुझ आजिज को परमात्मा का नाम (ही) सहारा है, मेरे लिए खटणे कमाणे के लिए परमात्मा का नाम ही रोज़ी है। मेरे लिए इकठ्ठे करने के लिए (भी) परमात्मा का नाम ही है। (जो मनुष्य हरी-नाम-धन इकट्ठा करता है) इस लोक में और परलोक में उस के* *काम आता है ॥१॥ हे भाई! परमात्मा के नाम में मस्त हो कर, संत जन बेअंत प्रभु के प्रेम में जुड़ के- एक निरंकार के गुण गाते रहते हैं ॥ रहाउ ॥ हे भाई! बहुत निम्र-स्वभाव संत की सोभा (का मूल) है, परमात्मा की सिफत-सलाह करनी ही संत की प्रशंसा (का कारण) है। परमात्मा की भगती संत जानों के हृदय में आनंद पैदा करती है। (भक्ति की बरकत से) संत जनों के हृदय में सुख बना रहता है (उनके अंदर की) चिंता नास हो जाती है ॥२॥ हे भाई! साध संत जहाँ (भी) इकट्ठे होते हैं, वहाँ वह साज वरत के बाणी पढ़ कर परमात्मा की सिफत-सलाह का गीत (ही) गाते हैं। हे भाई! संतों की संगत में बैठ कर आतमिक आनंद प्राप्त होता है शांति हासिल होती है। पर उनकी संगत वही मनुष्य प्राप्त करता है जिस के माथे पर बखस़स (का लेख लिखा हो) ॥३॥ हे भाई! मैं अपने दोनों हाथ जोड़ कर अरदास करता हूँ, कि मैं संत जनां के चरन धो कर गुणों के ख़जाने परमात्मा का नाम उचारता रहूँ। हे भाई! जो दयाल कृपाल प्रभू की हज़ूरी में (सदा टिके रहते हैं) नानक उन्हा संत जनां के चरनों की धूड़ से आतमिक जीवन प्राप्त करता है ॥४॥२॥२३॥