अमृत वेले का हुक्मनामा – 29 दसंबर 2023
सलोकु महला २ ॥ चाकरु लगै चाकरी नाले गारबु वादु ॥ गला करे घणेरीआ खसम न पाए सादु ॥ आपु गवाइ सेवा करे ता किछु पाए मानु ॥ नानक जिस नो लगा तिसु मिलै लगा सो परवानु ॥१॥ महला २ ॥ जो जीइ होइ सु उगवै मुह का कहिआ वाउ ॥ बीजे बिखु मंगै अंम्रितु वेखहु एहु निआउ ॥२॥
अर्थ :- जो कोई नौकर अपने स्वामी की नौकरी भी करे, और उसके साथ के साथ अपने स्वामी के आगे अकड़ की बाते भी करता जाए और इस प्रकार की बाहरली बातें स्वामी के सामने करे, तो वह नौकर स्वामी की खुशी हासिल नहीं कर सकता। मनुख अपना आप मिटा के (स्वामी की) सेवा करे तो ही उस को (स्वामी के दर से) कुछ आदर मिलता है, तो ही, हे नानक ! वह मनुख अपने उस स्वामी को मिल सकता है जिस की सेवा में लगा हुआ है। (अपना आप गँवा के सेवा में) लगा हुआ मनुख ही (स्वामी के दर पर) कबूल होता है।1। जो कुछ मनुख के दिल में होता है, वही प्रकट होता है, (भावार्थ, जैसी मनुख की नीयत होती है, वैसा ही उस को फल लगता है), (अगर अंदर नीयत कुछ ओर हो, तो उस के उलट) मुख से कह देना व्यर्थ है। यह कैसी अचरज की बात है कि मनुख बीजता तो ज़हर है (भावार्थ, नीयत तो विकारों की तरफ है) (पर उस के फल के रूप में) माँगता अमृत है।2।