अमृत वेले का हुक्मनामा – 27 दसंबर 2023
रागु सूही महला १ कुचजी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मंञु कुचजी अमावणि डोसड़े हउ किउ सहु रावणि जाउ जीउ ॥ इक दू इकि चड़ंदीआ कउणु जाणै मेरा नाउ जीउ ॥ जिन्ही सखी सहु राविआ से अ्मबी छावड़ीएहि जीउ ॥ से गुण मंञु न आवनी हउ कै जी दोस धरेउ जीउ ॥ किआ गुण तेरे विथरा हउ किआ किआ घिना तेरा नाउ जीउ ॥ इकतु टोलि न अ्मबड़ा हउ सद कुरबाणै तेरै जाउ जीउ ॥ सुइना रुपा रंगुला मोती तै माणिकु जीउ ॥ से वसतू सहि दितीआ मै तिन्ह सिउ लाइआ चितु जीउ ॥ मंदर मिटी संदड़े पथर कीते रासि जीउ ॥ हउ एनी टोली भुलीअसु तिसु कंत न बैठी पासि जीउ ॥ अ्मबरि कूंजा कुरलीआ बग बहिठे आइ जीउ ॥ सा धन चली साहुरै किआ मुहु देसी अगै जाइ जीउ ॥ सुती सुती झालु थीआ भुली वाटड़ीआसु जीउ ॥ तै सह नालहु मुतीअसु दुखा कूं धरीआसु जीउ ॥ तुधु गुण मै सभि अवगणा इक नानक की अरदासि जीउ ॥ सभि राती सोहागणी मै डोहागणि काई राति जीउ ॥१॥ {पन्ना 762}
अर्थ: (हे सहेली!) मैंने सही जीवन की जाच नहीं सीखी, मेरे अंदर इतने ऐब हैं कि अंदर समा ही नहीं सकते (इस हालत में) मैं प्रभू-पति को प्रसन्न करने के लिए कैसे जा सकती हूँ? (उसके दर पर तो) एक से बढ़ कर एक हैं, मेरा तो वहाँ कोई नाम भी नहीं जानता। जिन सहेलियों ने प्रभू-पति को प्रसन्न कर लिया है, वह मानो (चौमासे में) आमों की (ठंडी) छाया में बैठी हुई हैं। मेरे अंदर तो वह गुण ही नहीं हैं (जिन पर प्रभू-पति रीझता है) मैं (अपने इस दुर्भाग्य का) दोष और किस पर दे सकती हूँ? Qहे प्रभू पति! (तू बेअंत गुणों का मालिक है) मैं तेरे कौन-कौन से गुण विस्तार से कहूँ? और मैं तेरा कौन-कौन सा नाम लूँ? (तेरे अनेकों गुणों को देख-देख के तेरा अनेकों ही नाम जीव ले रहे हैं)। तेरे बख्शे हुए किसी एक सुंदर पदार्थ के द्वारा भी (तेरी दातों के लेखे तक) नहीं पहुँच सकती (बस!) मैं तुझ पर से कुर्बान ही कुर्बान जाती हूँ। (हे सहेली! देख मेरे दुर्भाग्य) सोना, चाँदी, मोती और हीरा आदि सुंदर व कीमती पदार्थ- ये चीजें प्रभू-पति ने मुझे दीं, (और) मैं (उसको भुला के, उसकी दी हुई) इन चीजों से प्यार डाल बैठी। मिट्टी-पत्थर आदि के बनाए हुए सुंदर घर -यही मैंने अपने राशि-पूँजी बना लिए। मैं इन सुंदर पदार्थों में ही (फस के) गलती खा गई, (इन पदार्थों के देने वाले) उस पति-प्रभू के पास ना बैठी। माया के मोह में फस के जिस जीव-स्त्री के शुभ गुण उससे दूर-परे चले जाएं, और उसके अंदर निरे पाखण्ड ही इकट्ठे हो जाएं, वह जब इस हाल में परलोक जाए तो जा के परलोक में (प्रभू की हजूरी में) क्या मुँह दिखाएगी? हे प्रभू! माया के मोह की नींद में गाफिल पड़े रहने से मुझे बुढ़ापा आ गया है, जीवन के सही रास्ते से मैं विछुड़ी हुई हूँ, मैंने निरे दुख ही दुख सहेड़े हुए हैं। हे प्रभू! तू बेअंत गुणों वाला है, मेरे अंदर सारे अवगुण ही अवगुण हैं, फिर भी नानक की विनती (तेरे ही दर पर) है कि भाग्यशाली जीव-सि्त्रयाँ तो सदा ही तेरे नाम-रंग में रंगी हुई हैं, मुझ अभागन को भी कोई एक रात बख्श (मेरे पर भी कभी मेहर की निगाह कर)।1।