अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 23 दसंबर 2023

रामकली महला ५ ॥ महिमा न जानहि बेद ॥ ब्रहमे नही जानहि भेद ॥ अवतार न जानहि अंतु ॥ परमेसरु पारब्रहम बेअंतु ॥१॥ अपनी गति आपि जानै ॥ सुणि सुणि अवर वखानै ॥१॥ रहाउ ॥ संकरा नही जानहि भेव ॥ खोजत हारे देव ॥ देवीआ नही जानै मरम ॥ सभ ऊपरि अलख पारब्रहम ॥२॥ अपनै रंगि करता केल ॥ आपि बिछोरै आपे मेल ॥ इकि भरमे इकि भगती लाए ॥ अपणा कीआ आपि जणाए ॥३॥ संतन की सुणि साची साखी ॥ सो बोलहि जो पेखहि आखी ॥ नही लेपु तिसु पुंनि न पापि ॥ नानक का प्रभु आपे आपि ॥४॥२५॥३६॥


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