अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 2 दसंबर 2023

देवगंधारी महला ५ ॥ उलटी रे मन उलटी रे ॥ साकत सिउ करि उलटी रे ॥ झूठै की रे झूठु परीति छुटकी रे मन छुटकी रे साकत संगि न छुटकी रे ॥१॥ रहाउ ॥ जिउ काजर भरि मंदरु राखिओ जो पैसै कालूखी रे ॥ दूरहु ही ते भागि गइओ है जिसु गुर मिलि छुटकी त्रिकुटी रे ॥१॥ मागउ दानु क्रिपाल क्रिपा निधि मेरा मुखु साकत संगि न जुटसी रे ॥ जन नानक दास दास को करीअहु मेरा मूंडु साध पगा हेठि रुलसी रे ॥२॥४॥३७॥

हे मेरे मन! जो मनुख परमात्मा से सदा टूटे रहते हैं, उन से अपने को सदा दूर रखो, दूर रखो। हे मन! साकत झूठे मनुख की प्रीत को भी झूठा समझो, यह कभी अंत तक नहीं निभती, यह जरूर टूट जाती है। फिर, झूठे की सांगत मैं रहने से विकारों से कभी खलासी नहीं हो सकती।१।रहाउ। हे मन! जैसे कोई घर कज्जल से भर लिया जाये, उस में जो भी मनुख प्रवेश करेगा वह कालिख से भर जायेगा (इसी प्रकार परमात्मा से टूटे हुए मनुख के साथ मुख जोड़ने से विकारों की कालिख ही मिलेगी)। गुरु को मिल के जिस मनुख की माथे की सलवट मिट जाती है (जिस के अंदर से विकारों की खीच दूर हो जाती है) वह दूर से ही सकत (अधर्मी) मनुख से दूर दूर रहता है॥१॥ हे कृपा के घर प्रभू! हे कृपा के खजाने प्रभू! मैं तेरे पास एक दान माँगता हूँ (मेहर कर) मुझे किसी साकत का साथ ना मिले। हे दास नानक! (कह– हे प्रभू!) मुझे अपने दासों का दास बना ले, मेरा सिर तेरे संत-जनों के पैरों तले पड़ा रहे।2।4।37।


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