अमृत वेले का हुक्मनामा – 6 अक्टूबर 2023
वडहंसु महला ३ घरु १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मनि मैलै सभु किछु मैला तनि धोतै मनु हछा न होइ ॥ इह जगतु भरमि भुलाइआ विरला बूझै कोइ ॥१॥ जपि मन मेरे तू एको नामु ॥ सतगुरि दीआ मो कउ एहु निधानु ॥१॥ रहाउ ॥ सिधा के आसण जे सिखै इंद्री वसि करि कमाइ ॥ मन की मैलु न उतरै हउमै मैलु न जाइ ॥२॥ इसु मन कउ होरु संजमु को नाही विणु सतिगुर की सरणाइ ॥ सतगुरि मिलिऐ उलटी भई कहणा किछू न जाइ ॥३॥ भणति नानकु सतिगुर कउ मिलदो मरै गुर कै सबदि फिरि जीवै कोइ ॥ ममता की मलु उतरै इहु मनु हछा होइ ॥४॥१॥
राग वडहंस,घर १ में गुरु अमरदास जी की बाणी। अकालपुर्ख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। जो मनुख का मन (विकारों से) मैला हो जाता है तो सब कुछ मैला हो जाता है और सनान करने से मन पवित्र नहीं हो सकता। परन्तु यह संसार भ्रम में आ कर कुराह चला जा रहा है, कोई विरला ही (इस सचाई को समझता है॥१॥ हे मेरे मन! तू सिर्फ परमात्मा का एक नाम ही जपा कर। यह (नाम) खज़ाना मुझे गुरु ने दिया है॥१॥रहाउ॥ अगर मनुख करामाती जोगियों वाले आसन करने सीख ले और काम-वासना को जीत कर (आसनों के अभियास की) कमाई करने लग जाये, तो भी मन की मैल नहीं उतरती और (मन में से) अहंकार-हौमय की मैल नहीं जाती॥२॥ हे भाई! गुरू की शरण पड़े बिना और कोई यत्न इस मन को पवित्र नहीं कर सकता। अगर गुरू मिल जाए तो मन बिरती संसार से पलट जाती है (और मन की ऐसी ऊँची दशा बन जाती है जो) बयान नहीं की जा सकती।3। नानक कहता है– जो मनुष्य गुरू को मिल के (विकारों से) अछूता हो जाता है, और, फिर गुरू के शबद में जुड़ के आत्मिक जीवन हासिल कर लेता है (उसके अंदर से माया की) ममता की मैल उतर जाती है, उसका ये मन पवित्र हो जाता है।4।1।