अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 1 सतंबर 2023

रामकली महला ५ ॥ भेटत संगि पारब्रहमु चिति आइआ ॥ संगति करत संतोखु मनि पाइआ ॥ संतह चरन माथा मेरो पउत ॥ अनिक बार संतह डंडउत ॥१॥ इहु मनु संतन कै बलिहारी ॥ जा की ओट गही सुखु पाइआ राखे किरपा धारी ॥१॥ रहाउ ॥ संतह चरण धोइ धोइ पीवा ॥ संतह दरसु पेखि पेखि जीवा ॥ संतह की मेरै मनि आस ॥ संत हमारी निरमल रासि ॥२॥ संत हमारा राखिआ पड़दा ॥ संत प्रसादि मोहि कबहू न कड़दा ॥ संतह संगु दीआ किरपाल ॥ संत सहाई भए दइआल ॥३॥ सुरति मति बुधि परगासु ॥ गहिर गंभीर अपार गुणतासु ॥ जीअ जंत सगले प्रतिपाल ॥ नानक संतह देखि निहाल ॥४॥१०॥२१॥

अर्थ :-हे भाई ! मेरा यह मन संत-जनों से सदके जाता है, जिन का सहारा ले के मैंने (आत्मिक) आनंद हासिल किया है। संत जन कृपा कर के (विकार आदिक से) रक्षा करते हैं।1।रहाउ। हे भाई ! संत जनों के साथ मिलते हुए परमात्मा (मेरे) चित में आ बसा है , संत जनों की संगत करते हुए मैंने मन में संतोख प्राप्त कर लिया है। (भगवान कृपा करे) मेरा मस्तक संत जनों के चरनों पर झुका रहे, मैं अनेकों वारी संत जनाँ को नमस्कार करता हूँ।1। हे भाई ! (अगर भगवान कृपा करे, तो) मैं संत जनों के चरण धो धो के पीता रहूँ, संत जनों का दर्शन कर कर के मुझे आत्मिक जीवन मिलता रहता है। मेरे मन में संत जनों की सहायता का धरवास बना रहता है, संत जनों की संगत ही मेरे लिए पवित्र सरमाया है।2। हे भाई ! संत जनाँ ने (विकार आदिक से) मेरी इज्ज़त बचा ली है, संत जनों की कृपा के साथ मुझे कभी भी कोई चिंता-फिक्र नहीं सताता। कृपा के सोमे परमात्मा ने आप ही मुझे संत जनों का साथ बख्शा है। जब संत जन मददगार बनते हैं, तो भगवान दयावान हो जाता है।3। (हे भाई ! संत जनों की संगत की बरकत के साथ मेरी) सुरति में मति में बुधि में (आत्मिक जीवन का) प्रकाश हो जाता है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक ! अथाह, बयंत, गुणों का खजाना, और सारे जीवों की पालना करने वाला परमात्मा (अपने) संत जनाँ को देख के रोम रोम खुश हो जाता है।4।10।21।


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top