अमृत वेले का हुक्मनामा – 24 जुलाई 2023
देवगंधारी ५ ॥ माई जो प्रभ के गुन गावै ॥ सफल आइआ जीवन फलु ता को पारब्रहम लिव लावै ॥१॥ रहाउ ॥ सुंदरु सुघड़ु सूरु सो बेता जो साधू संगु पावै ॥ नामु उचारु करे हरि रसना बहुड़ि न जोनी धावै ॥१॥ पूरन ब्रहमु रविआ मन तन महि आन न द्रिसटी आवै ॥ नरक रोग नही होवत जन संगि नानक जिसु लड़ि लावै ॥२॥१४॥
अर्थ: हे माँ! जो मनुष्य परमात्मा के गुण गाता रहता है, परमात्मा के चरणों में प्रेम बनाए रखता है, उसका जगत में आना कामयाब हो जाता है।1। रहाउ। हे माँ! जो मनुष्य गुरू का साथ प्राप्त कर लेता है, वह मनुष्य सुजीवन वाला, सुघड़, शूरवीर बन जाता है, वह अपनी जीभ से परमात्मा का नाम उच्चारता रहता है, और मुड़-मुड़ के जूनियों में नहीं भटकता।1। हे नानक! (कह–) जिस मनुष्य को परमात्मा संत जनों के पल्ले से लगा देता है, उसे संत जनों की संगति में नर्क व रोग नहीं व्याप्तते, सर्व-व्यापक प्रभू हर समय उसके मन में उसके हृदय में बसा रहता है, प्रभू के बिना उसको (कहीं भी) कोई और नहीं दिखता।2।14।