अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 12 जुलाई 2023

देवगंधारी महला ५ ॥ अपुने हरि पहि बिनती कहीऐ ॥ चारि पदारथ अनद मंगल निधि सूख सहज सिधि लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ मानु तिआगि हरि चरनी लागउ तिसु प्रभ अंचलु गहीऐ ॥ आंच न लागै अगनि सागर ते सरनि सुआमी की अहीऐ ॥१॥ कोटि पराध महा अक्रितघन बहुरि बहुरि प्रभ सहीऐ ॥ करुणा मै पूरन परमेसुर नानक तिसु सरनहीऐ ॥२॥१७॥

देवगंधारी महला ५ ॥ अपने परमात्मा के पास ही अर्जोई करनी चाहिए। इस तरह यह चारो पदार्थ (धर्म अर्थ, काम, मोक्ष), खुशीयों के खजाने, आत्मिक अडोलता के सुख करामाती ताकतों से हरेक चीज परमात्मा से मिल जाती है॥1॥रहाउ॥ मैं तो अहंकार छोड़ कर परमात्मा के चरणों में ही पड़ा रहता हूँ। उस प्रभु का पल्ला ही पकड़ना चाहिए। विकारों की ) अग्नि के समुन्दर से अग्नि प्रभाव नहीं लगता अगर मालिक प्रभु की शरण मांगी जाए ॥1॥ बड़े बड़े शुकराना ना करने वालों के करोड़ों पाप परमात्मा बार बार सहारता है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! परमात्मा पूर्ण तौर पर तरस-सरूप है उसी की ही शरण पड़ना चाहिए॥2॥17॥


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