अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 25 मई 2023

वडहंसु महला ५ ॥ साधसंगि हरि अंमरितु पीजै ॥ ना जीउ मरै न कबहू छीजै ॥१॥ वडभागी गुरु पूरा पाईऐ ॥ गुर किरपा ते प्रभू धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥ रतन जवाहर हरि माणक लाला ॥ सिमरि सिमरि प्रभ भए निहाला ॥२॥ जत कत पेखउ साधू सरणा ॥ हरि गुण गाइ निरमल मनु करणा ॥३॥ घट घट अंतरि मेरा सुआमी वूठा ॥ नानक नामु पाइआ प्रभु तूठा ॥४॥६॥

अर्थ :-हे भाई ! पूरा गुरु बड़ी किस्मत के साथ मिलता है, और, गुरु की कृपा के साथ परमात्मा का सुमिरन किया जा सकता है।1।रहाउ। हे भाई ! गुरु की संगत में ही आत्मिक जीवन देने वाला हरि-नाम जल पीया जा सकता है, (इस नाम-जल की बरकत के साथ) जीव ना आत्मिक मौत मरती है, ना कभी आत्मिक जीवन में कच्ची होती है।1। हे भाई ! परमात्मा की सिफ़त-सालाह के बचन (मानो) रतन हैं, जवाहर हैं, मोती हैं, लाल हैं। भगवान जी का नाम सिमर सिमर के सदा खिले रहते है।2। हे भाई ! मैं जिधर किधर देखता हूँ, गुरु की शरण ही (एक ऐसी जगह है जहाँ) परमात्मा की सिफ़त-सालाह के गीत गा गा के मन को पवित्र किया जा सकता है।3। हे नानक ! (बोल-) मेरा स्वामी-भगवान (वैसे तो) हरेक शरीर में बसता है (पर जिस मनुख के ऊपर वह) भगवान प्रसन्न होता है (वही उस का) नाम (-सुमिरन) प्राप्त करता है।4।6।


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