अमृत वेले का हुक्मनामा – 22 मई 2023
सलोक मः ३ ॥ अपणा आपु न पछाणई हरि प्रभु जाता दूरि ॥ गुर की सेवा विसरी किउ मनु रहै हजूरि ॥ मनमुखि जनमु गवाइआ झूठै लालचि कूरि ॥ नानक बखसि मिलाइअनु सचै सबदि हदूरि ॥१॥
(हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाला मनुख) अपने आत्मिक जीवन को (कभी) परखता नहीं, वह परमात्मा को (कहीं) दूर बस्ता समझता है, उस को गुरु के बताये हुए काम (सदा) भूले रहता हैं, (इस लिए उस का) मन (परमात्मा की) हजूरी में (कभी) नहीं टिकता। हे नानक! अपने मन के पीछे चलने वाले मनुख ने झूठे लालच में (लग के) माया के मोह में (फस के ही अपना) जीवन गवा लिया होता है। जो मनुख सिफत-सलाह वाले गुरु-शब्द के द्वारा (परमात्मा की) हजूरी में टिके रहते हैं, उन को परमात्मा ने कृपा कर के (अपने चरणों में) मिला लिया होता है।१।