अमृत वेले का हुक्मनामा – 21 मई 2023
बिलावलु महला ५ ॥ पिंगुल परबत पारि परे खल चतुर बकीता ॥ अंधुले त्रिभवण सूझिआ गुर भेटि पुनीता ॥१॥ महिमा साधू संग की सुनहु मेरे मीता ॥ मैलु खोई कोटि अघ हरे निरमल भए चीता ॥१॥ रहाउ ॥ ऐसी भगति गोविंद की कीटि हसती जीता ॥ जो जो कीनो आपनो तिसु अभै दानु दीता ॥२॥ सिंघु बिलाई होए गइओ त्रिणु मेरु दिखीता ॥ स्रमु करते दम आढ कउ ते गनी धनीता ॥३॥ कवन वडाई कहि सकउ बेअंत गुनीता ॥ करि किरपा मोहि नामु देहु नानक दर सरीता ॥४॥७॥३७॥
अर्थ: हे मेरे मित्र! गुरू की संगति की महिमा (ध्यान से) सुन। (जो भी मनुष्य नित्य गुरू की संगति में बैठता है, उसका) मन पवित्र हो जाता है, (उसके अंदर से विकारों की) मैल दूर हो जाती है, उसके करोड़ों पाप नाश हो जाते हैं।1। रहाउ।हे मित्र! गुरू को मिल के (मनुष्य) पवित्र जीवन वाले हो जाते हैं, (मानो) पिंगले मनुष्य पहाड़ों से पार लांघ जाते हैं, महा मूर्ख मनुष्य समझदार व्याख्यान-कर्ता बन जाते हैं, अंधे को तीनों भवनों की समझ पड़ जाती है।1।(हे मित्र! साध-संगति में आ के की हुई) परमात्मा की भक्ति आश्चर्यजनक (ताकत रखती है, इसकी बरकति से) कीड़ी (विनम्रता) ने हाथी (अहंकार) को जीत लिया है। (भक्ति पर प्रसन्न हो के) जिस-जिस मनुष्य को (परमात्मा ने) अपना बना लिया, उसको परमात्मा ने निर्भयता की दाति दे दी।2।(हे मित्र! गुरू की संगति की बरकति से) शेर (अहंकार) बिल्ली (निम्रता) बन जाता है, तीला (गरीबी स्वभाव) सुमेर पर्वत (जैसी बहुत बड़ी ताकत) दिखने लग जाता है। (जो मनुष्य पहले) आधी-आधी कौड़ी के लिए धक्के खाते फिरते हैं, वे दौलत-मंद धनाढ बन जाते हैं (माया की ओर से बेमुथाज हो जाते हैं)।3।(हे मित्र! साध-संगति में से मिलते हरी-नाम की) मैं कौन-कौन सी महिमा बताऊँ? परमात्मा का नाम बेअंत गुणों का मालिक है। हे नानक! अरदास कर, और, (कह- हे प्रभू!) मैं तेरे दर का गुलाम हूँ, मेहर कर और, मुझे अपना नाम बख्श।4।7।37।