अमृत वेले का हुक्मनामा – 15 मई 2023
रागु सूही महला ३ घरु १० ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ दुनीआ न सालाहि जो मरि वंञसी ॥ लोका न सालाहि जो मरि खाकु थीई ॥१॥ वाहु मेरे साहिबा वाहु ॥ गुरमुखि सदा सलाहीऐ सचा वेपरवाहु ॥१॥ रहाउ ॥ दुनीआ केरी दोसती मनमुख दझि मरंनि ॥ जम पुरि बधे मारीअहि वेला न लाहंनि ॥२॥ गुरमुखि जनमु सकारथा सचै सबदि लगंनि ॥ आतम रामु प्रगासिआ सहजे सुखि रहंनि ॥३॥ गुर का सबदु विसारिआ दूजै भाइ रचंनि ॥ तिसना भुख न उतरै अनदिनु जलत फिरंनि ॥४॥ दुसटा नालि दोसती नालि संता वैरु करंनि ॥ आपि डुबे कुट्मब सिउ सगले कुल डोबंनि ॥५॥ निंदा भली किसै की नाही मनमुख मुगध करंनि ॥ मुह काले तिन निंदका नरके घोरि पवंनि ॥६॥
राग सूही, घर १० में गुरु अमर दास जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। दुनिया की खुशामद न करता फिर, दुनिया तो नाश हो जाएगी। लोगों को भी न सलाहता फिर, खलकत भी मर मिट जाएगी॥१॥ हे मेरे मालिक! तूं धन्य है! तू ही सलाहने योग्य है। गुरु की सरन आ कर सदा उस परमात्मा की सिफत सलाह करनी चाहिए जो सदा कायम रहने वाला है, और जिस को कोई मोहताजी नहीं है॥१॥रहाउ॥ अपने मन के पीछे चलने वाले मनुख दुनिया की मित्रता में जल मरते हैं, ( आत्मिक जीवन जला कर खाक कर लेते हैं। अंत) यमराज के दर की चोटें खातें हैं। तब उनको (हाथों से जा चूका मनुख जन्म का) समय नहीं मिलता॥२॥ हे भाई! जो मनुष्य गुरू की शरण पड़ते हैं, उनका जीवन सफल हो जाता है, क्योंकि वे सदा-स्थिर प्रभू की सिफत सालाह की बाणी में जुड़े रहते हैं। उनके अंदर सर्व-व्यापक परमात्मा का प्रकाश हो जाता है। वे आत्मिक अडोलता में आनंद में मगन रहते हैं।3। हे भाई! जो मनुष्य गुरू की बाणी को भुला देते हैं, वे माया के मोह में मस्त रहते हैं, उनके अंदर से माया की प्यास-भूख दूर नहीं होती, वे हर वक्त (तृष्णा की आग में) जलते फिरते हैं।4। ऐसे मनुष्य बुरे लोगों से मित्रता बनाए रखते हैं, और संतों से वैर कमाते हैं। वे खुद अपने परिवार समेत (संसार समुंद्र में) डूब जाते हैं, अपनी कुलों को भी (अपने ही अन्य रिश्तेदारों को भी) साथ में ही डुबा लेते हैं।5। हे भाई! किसी की भी निंदा करनी अच्छी बात नहीं है। अपने मन के पीछे चलने वाले मूर्ख मनुष्य ही निंदा किया करते हैं। (लोक-परलोक में) वही बदनामी कमाते हैं और भयानक नर्क में पड़ते हैं।6।