अमृत वेले का हुक्मनामा – 6 मई 2023
सूही महला ५ ॥ अबिचल नगरु गोबिंद गुरू का नामु जपत सुखु पाइआ राम ॥ मन इछे सेई फल पाए करतै आपि वसाइआ राम ॥ करतै आपि वसाइआ सरब सुख पाइआ पुत भाई सिख बिगासे ॥ गुण गावहि पूरन परमेसुर कारजु आइआ रासे ॥ प्रभु आपि सुआमी आपे रखा आपि पिता आपि माइआ ॥ कहु नानक सतिगुर बलिहारी जिनि एहु थानु सुहाइआ ॥१॥
( गुरु की शरण आ कर जिन मनुखों ने) सब से बड़े गोबिंद का नाम जपते हुए आत्मिक आनंद प्राप्त कर लिया, (उनका सरीर) अबिनासी परमात्मा के रहने के लिए नगर बन गया। करतार ने (उस सरीर-नगर को) आप बसा दिया (अपने बसने के लिए तैयार कर लिया, उन्होंने सारे सुख-आनंद मनाये, (गुरु के वह) सिख (गुरु के वह) पुत्र (गुरु के वह) भाई सदा खिड़े-माथे रहते हैं। (वह बड़े भाग्य वाले मनुख) सर्ब-व्यापक परमात्मा के गुण गाते रहते हैं, (उन मनुखों का) जीवन मनोरथ सिरे चढ़ जाता है। (जो मनुख परमात्मा का नाम जपते हैं, जिन के सरीर को परमात्मा ने अपने बसने के लिए नगर बना लिया) मालिक प्रभु (उनके सिर पर) सदा आप ही सहाई बना रहता है (जैसे माँ-बाप अपने पुत्र का ध्यान रखते हैं, उसी प्रकार परमात्मा उन मनुखों के लिए) आप ही बाप, आप ही माँ बना रहता है। गुरु नानक जी कहते हैं की उस गुरु से सदा कुर्बान होते रहो, जिस ने (हरी-नाम-सिमरन की दात दे के किसी वड-भागी के) इस सरीर स्थान को सुंदर बना दिया॥१॥