अमृत वेले का हुक्मनामा – 16 मार्च 2023
रागु सूही महला ३ घरु १ असटपदीआ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ नामै ही ते सभु किछु होआ बिनु सतिगुर नामु न जापै ॥ गुर का सबदु महा रसु मीठा बिनु चाखे सादु न जापै ॥ कउडी बदलै जनमु गवाइआ चीनसि नाही आपै ॥ गुरमुखि होवै ता एको जाणै हउमै दुखु न संतापै ॥१॥ बलिहारी गुर अपणे विटहु जिनि साचे सिउ लिव लाई ॥ सबदु चीन्हि आतमु परगासिआ सहजे रहिआ समाई ॥१॥ रहाउ ॥
हे भाई! परमात्मा के नाम से सब कुछ(सारा आत्मिक जीवन रोशन) होता है, परन्तु गुरु की शरण आये बिना नाम की कदर नहीं पड़ती। गुरु का शब्द बड़े रस वाला मीठा है, जब तक इस को चखा न जाए, स्वाद का पता नहीं लग सकता। जो मनुख(गुरु के शब्द द्वारा) आपने आत्मिक जीवन को नहीं पहचानता, वेह अपने मनुख जीवन को कोडियों के भाव(वियर्थ ही) गवा लेता है। जब मनुख गुरु के बताये मार्ग पर चलता है, तब परमात्मा से उसकी गहरी साँझ पैदा होती है, और, उसे हौमय का दुःख तंग नहीं कर सकता।१। हे भाई! मैं अपने गुरु से सदके (कुर्बान) जाता हूँ, जिस ने (सरन आये मनुख की) सादे- थिर रहने वाले परमात्मा से प्रीत जोड़ दी (भावार्थ, जोड़ देता है) गुरु के शब्द से जुड़ कर मनुख आत्मिक जीवन चमक जाता है, मनुख आत्मिक अडोलता में लीं रहता है।रहाउ।