अमृत वेले का हुक्मनामा – 2 मार्च 2023
रागु बिहागड़ा छंत महला ४ घरु १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हरि हरि नामु धिआईऐ मेरी जिंदुड़ीए गुरमुखि नामु अमोले राम ॥ हरि रसि बीधा हरि मनु पिआरा मनु हरि रसि नामि झकोले राम ॥ गुरमति मनु ठहराईऐ मेरी जिंदुड़ीए अनत न काहू डोले राम ॥ मन चिंदिअड़ा फलु पाइआ हरि प्रभु गुण नानक बाणी बोले राम ॥१॥
राग बेहागडा, घर १ में गुरु रामदास जी की बानी ‘छन्त’ । अकाल पुरख एक हे और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे मेरी सुंदर जिन्दे। सदा परमात्मा का नाम जपना चाहिये, परमात्मा का अमोलक नाम गुरु के द्वारा (hi) मिलता है। जो मन परमत्मा के नाम-रस में रम जाता है, वह मन प्रम्तामा को प्यारा लगता है, वः मन आनंद से प्रभु के नाम में डुबकी लगाई रखता है। हे मेरी सुंदर जान(जिन्द)! गुरु की बुद्धि पर चल के इस मन को (प्रभु चरणों में) टिकाना चाहिये (गुरु की बुद्धि की बरकत से मन) किसी और तरफ नहीं डोलता। हे नानक! जो मनुख (गुरमत के रस्ते चल के) प्रभु के गुणों वाली बनी उच्चारता रहता है, वेह मन-चाहा फल पा लेता है।१।