अमृत वेले का हुक्मनामा – 15 फरवरी 2023
रागु गोंड महला ५ चउपदे घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ जीअ प्रान कीए जिनि साजि ॥ माटी महि जोति रखी निवाजि ॥ बरतन कउ सभु किछु भोजन भोगाइ ॥ सो प्रभु तजि मूड़े कत जाइ ॥१॥ पारब्रहम की लागउ सेव ॥ गुर ते सुझै निरंजन देव ॥१॥ रहाउ ॥ जिनि कीए रंग अनिक परकार ॥ ओपति परलउ निमख मझार ॥ जा की गति मिति कही न जाइ ॥ सो प्रभु मन मेरे सदा धिआइ ॥२॥
राग गोंड , घर 2 में गुरु अर्जुन देव जी की चार-बंदो वाली बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे भाई! जिस प्रभु ने (तुझे ) पैदा करके तुझे जीवन दिया प्राण दिए , जिस प्रभु ने कृपा करके सरीर में (अपनी ज्योत रख दी, इस्तेमाल करने को तुझे हरेक वस्तु दी है, और अनेकों प्रकार के भोजन तुझे खिलाता है, हे मुर्ख! प्रभु को विसार कर (तेरा मन) और कहाँ भटकता रहता है?॥1॥ हे भाई! मैं तो परमात्मा की भक्ति में लगना चाहता हूँ। गुरु से ही उस प्रकाश-रूप माया-रहित प्रभु की भक्ति की समझ मिल सकती है ॥रहाउ॥ हे मेरे मन! जिस ने (जगत में) अनेकों प्रकार के रंग (रूप) पैदा किये हैं, जो अपनी पैदा की हुए रचना को पलक झपकते ही नास कर सकता है, और जिस के बारे में यह नहीं कहा जा सकता की वह कैसा है और कितना बड़ा है, हे मेरे मन! सदा उस प्रभु का ध्यान करा कर॥2॥