अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 10 फरवरी 2023

आसा ॥ काहू दीन्हे पाट पट्मबर काहू पलघ निवारा ॥ काहू गरी गोदरी नाही काहू खान परारा ॥१॥ अहिरख वादु न कीजै रे मन ॥ सुक्रितु करि करि लीजै रे मन ॥१॥ रहाउ ॥ कुम्हारै एक जु माटी गूंधी बहु बिधि बानी लाई ॥ काहू महि मोती मुकताहल काहू बिआधि लगाई ॥२॥

(परमात्मा ने) कई बन्दों को रेशम के कपडे (पहनने को) दिये हैं और निवारी पलंग (सोने को); पर कई (बेचारों) को गल चुकी चप्पल भी नहीं मिलती, और कई घरों में (बिस्तर की जगह) पराली ही है॥१॥ (पर) हे मन! ईष्र्या झगडा क्यों करता है? नेक काम करे जा और तू भी (यह सुख हासिल कर ले॥१॥ रहाउ॥ कुम्हार ने एक ही मिटटी गूंधी और उस ने कई प्रकार के रंग लगा दिए (भाव, कई प्रकार के बर्तन बना दिए)। किसी बर्तन में मोती और मोतियों की माला (मनुष्य ने) डाल दी और किसी में (शराब आदि) रोग लगाने वाली वस्तुएं॥२॥


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