अमृत वेले का हुक्मनामा – 20 जनवरी 2023
बिलावलु महला १ ॥ मै मनि चाउ घणा साचि विगासी राम ॥ मोही प्रेम पिरे प्रभि अबिनासी राम ॥ अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ ॥ किरपालु सदा दइआलु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ ॥ मै अवरु गिआनु न धिआनु पूजा हरि नामु अंतरि वसि रहे ॥ भेखु भवनी हठु न जाना नानका सचु गहि रहे ॥१॥ भिंनड़ी रैणि भली दिनस सुहाए राम ॥ निज घरि सूतड़ीए पिरमु जगाए राम ॥ नव हाणि नव धन सबदि जागी आपणे पिर भाणीआ ॥ तजि कूड़ु कपटु सुभाउ दूजा चाकरी लोकाणीआ ॥ मै नामु हरि का हारु कंठे साच सबदु नीसाणिआ ॥ कर जोड़ि नानकु साचु मागै नदरि करि तुधु भाणिआ ॥२॥
अर्थ: हे सखी! सदा तेरे रहने वाले परमात्मा (के नाम) में (स्थिर रहकर) मेरा मन खिला रहता है, मेरे मन में बहुत चाव बना रहता है। अविनाशी प्यारे प्रभु ने ( मेरे मन को) अपने प्रेम की खींच से मस्त कर रखा है। हे सखी! वह परमात्मा इन आंखो से नही दिखता, परन्तु वह परमात्मा बड़े बड़े नाथों का भी नाथ है, जगत में वही सब कुछ होता है, जो उस प्रमात्मा को अच्छा लगता है। ही प्रभ, आप कृपा का सागर हो, आप सदा ही दया का चश्मा हो, आप हो सब दाते देने वाले हो, और आप ही सब जीवों के अंदर जीवन रूप हो। हे सखी! (मेरे) मन के अंदर परमात्मा का नाम बस रहा है (इस हरी नाम के बराबर की) मुझे कोई धर्म चर्चा, कोई समाधि, कोई देव पूजा नहीं सुझती। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! ( के है सखी!) में सदा कायम रहने वाले हरी नाम को (अपने हृदय में ) पक्की तरह से टिका लिया है। (इस के बराबर का) में कोई वेष, कोई तीर्थ रट्न, कोई हठ योग नही समझती।१। हरि नाम रस में भीगी हुई (उस जीव स्त्री को जिंदगी की रातें और दिन सब सुहावने लगते हैं। हे अपने आप में ही रहने वाली जीव स्त्री ! ( देख जिस जीव स्त्री को) परमात्मा का प्यार, माया के मोह से सचेत रखता है। जो जीव स्त्री , गुरु के शब्द की बरकत द्वारा ( माया के मोह से) सचेत होती है, वह जीव स्त्री विकारों से बची रहती है और अपने प्रभु पति को प्यार करने लग जाती है। वह जीव स्त्री नाशिवंत पदार्थों का मोह, ठगी फरेब, माया का प्यार, बनाए रखने वाली आदत और लोगों की मोहताजी छोड़कर प्रभु पति को प्यार करती है। हे सखी! जिस प्रकार, गले में हार (डालते हैं), उसी प्रकार, परमात्मा का नाम (मैंने अपने गले में पिरो लिया है) सदा थिर प्रभु की सिफत सलाह ( मेरी जिंदगी की अगुवाई करने वाला) परवाना है। गुरु नानक जी कहते हैं, नानक दोनों हाथ जोड़कर (परमात्मा के दर से उसका) सदा स्थाई रहने वाला नाम मांगता रहता है, (और गुरु नानक जी कहते हैं) हे प्रभु अगर तुझे अच्छा लगे तो मेरे ऊपर कृपा की निगाह कर मुझे अपना नाम दे)।२।