अमृत वेले का हुक्मनामा – 26 फरवरी 2025
*सोरठि महला ५ ॥*
*गुरु पूरा भेटिओ वडभागी मनहि भइआ परगासा ॥ कोइ न पहुचनहारा दूजा अपुने साहिब का भरवासा ॥१॥ अपुने सतिगुर कै बलिहारै ॥ आगै सुखु पाछै सुख सहजा घरि आनंदु हमारै ॥ रहाउ ॥ अंतरजामी करणैहारा सोई खसमु हमारा ॥ निरभउ भए गुर चरणी लागे इक राम नाम आधारा ॥२॥ सफल दरसनु अकाल मूरति प्रभु है भी होवनहारा ॥ कंठि लगाइ अपुने जन राखे अपुनी प्रीति पिआरा ॥३॥ वडी वडिआई अचरज सोभा कारजु आइआ रासे ॥ नानक कउ गुरु पूरा भेटिओ सगले दूख बिनासे ॥४॥५॥*
*☬ अर्थ ☬*
*हे भाई! बड़ी किस्मत से मुझे पूरा गुरू मिल गया है, मेरे मन में आत्मिक जीवन की सूझ पैदा हो गई है। अब मुझे अपने मालिक का सहारा हो गया है, कोई उस मालिक की बराबरी नहीं कर सकता ॥१॥ हे भाई! मैं अपने गुरू से कुर्बान जाता हूँ, (गुरू की कृपा से) मेरे हृदय-घर में आनंद बना रहता है, इस लोग में भी आत्मिक अडोलता का सुख मुझे प्राप्त हो गया है, और, परलोक में भी यह सुख टिका रहने वाला है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! (मुझे निश्चय हो गया है कि जो) सिरजनहार सब के दिल की जानने वाला है वही मेरे सिर पर राखा है। जब से मैं गुरू की चरणी लगा हूँ, मुझे परमात्मा के नाम का सहारा हो गया है। कोई भय मुझे अब छू नहीं सकता ॥२॥ (हे भाई! गुरू की कृपा से मुझे यकीन बन गया है कि) जिस परमात्मा का दर्शन मनुष्य जन्म का फल देने वाला है, जिस परमात्मा की हस्ती मौत से रहित है, वह इस पल भी (मेरे सिर पर) मौजूद है, और, सदा कायम रहने वाला है। वह प्रभू अपनी प्रीत की अपने प्यार की दात दे कर अपने सेवकों को अपने गले से लगा कर रखता है ॥३॥ वह गुरू बड़ी वडियाई वाला है, अश्रचर्ज शोभा वाला है, उस की श़रण पड़ने से जिंदगी का मनोरथ प्राप्त हो जाता है। हे भाई! मुझे नानक को पूरा गुरू मिल गया है, मेरे सभी दुख दूर हो गए हैं ॥४॥५॥*