संधिआ वेले का हुक्मनामा – 23 फरवरी 2025
सोरठि ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
बहु परपंच करि पर धनु लिआवै ॥
सुत दारा पहि आनि लुटावै ॥१॥
मन मेरे भूले कपटु न कीजै ॥
अंति निबेरा तेरे जीअ पहि लीजै ॥१॥ रहाउ ॥
छिनु छिनु तनु छीजै जरा जनावै ॥
तब तेरी ओक कोई पानीओ न पावै ॥२॥
कहतु कबीरु कोई नही तेरा ॥
हिरदै रामु की न जपहि सवेरा ॥३॥९॥
{अंग-६५६}
सोरठि
वाहेगुरु केवल एक है और वह सच्चे गुरु द्वारा प्राप्त होता है ।
कई तरह की ठगीयां करके तू पराया माल लाता है, और ला के तू पुत्र व पत्नी पर आ लुटाता है।1।
हे मेरे भूले हुए मन! (रोजी आदि के खातिर किसी के साथ) धोखा-फरेब ना किया कर। आखिर को (इन बुरे कर्मों का) लेखा तेरे अपने प्राणों से ही लिया जाना है।1। रहाउ।
(देख, इन ठगीयां में ही) धीरे-धीरे तेरा अपना शरीर कमजोर होता जा रहा है, बुढ़ापे की निशानियां आ रही हैं (जब तू बुढ़ा हो गया, और हिलने के काबिल भी ना रहा) तब (इन में से, जिनकी खातिर तू ठगीयां करता है) किसी ने तेरी चुल्ली में पानी भी नहीं डालना।2।
(तुझे) कबीर कहता है: (हे जिंदे!) किसी ने भी तेरा (साथी) नहीं बनना। (एक प्रभु ही असल साथी है) तू समय रहते (अभी-अभी) उस प्रभु को क्यों नहीं सिमरती?।3।9।