संधिआ वेले का हुक्मनामा – 3 दसंबर 2024

धनासरी महला ४ ॥ इछा पूरकु सरब सुखदाता हरि जा कै वसि है कामधेना ॥ सो ऐसा हरि धिआईऐ मेरे जीअड़े ता सरब सुख पावहि मेरे मना ॥१॥ जपि मन सति नामु सदा सति नामु ॥ हलति पलति मुख ऊजल होई है नित धिआईऐ हरि पुरखु निरंजना ॥ रहाउ ॥ जह हरि सिमरनु भइआ तह उपाधि गतु कीनी वडभागी हरि जपना ॥ जन नानक कउ गुरि इह मति दीनी जपि हरि भवजलु तरना ॥२॥६॥१२॥

हे मेरी जिंदे! जो हरी सब कामनाए पूरी करने वाला है, जो सरे सुख देने वाला है, जिस के बसमे (स्वर्ग में रहने वाली समझी गयी) कामधेन है उस ऐसी समर्था वाले परमात्मा का सुमिरन करना चाहिए। हे मेरे मन! (जब तू परमात्मा का सुमिरन करेगा) तब सारे सुख हासिल कर लेगा।१। हे मन! सदा-थिर प्रभु का नाम सदा जपा करो। हे भाई! सरब-व्यापक निर्लेप हरी का सदा ध्यान करना चाहिए, (इस प्रकार) लोक परलोक में इज्जत कमा लेनी चाहिए।रहाउ। हे भाई! जिस हृदय में परमात्मा की भक्ति होती है उसमें से हरेक किस्म का झगड़ा-बखेड़ा निकल जाता है। (फिर भी) बहुत भाग्य से ही परमात्मा का भजन हो सकता है। हे भाई! दास नानक को (तो) गुरू ने ये समझ दी है कि परमात्मा का नाम जप के संसार समुंद्र से पार लांघ जाना है।2।6।12।


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