अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 28 अक्टूबर 2024

सलोकु मः ३ ॥ सेखा चउचकिआ चउवाइआ एहु मनु इकतु घरि आणि ॥ एहड़ तेहड़ छडि तू गुर का सबदु पछाणु ॥ सतिगुर अगै ढहि पउ सभु किछु जाणै जाणु ॥ आसा मनसा जलाइ तू होइ रहु मिहमाणु ॥ सतिगुर कै भाणै भी चलहि ता दरगह पावहि माणु ॥ नानक जि नामु न चेतनी तिन धिगु पैनणु धिगु खाणु ॥१॥ मः ३ ॥ हरि गुण तोटि न आवई कीमति कहणु न जाइ ॥ नानक गुरमुखि हरि गुण रवहि गुण महि रहै समाइ ॥२॥ पउड़ी ॥ हरि चोली देह सवारी कढि पैधी भगति करि ॥ हरि पाटु लगा अधिकाई बहु बहु बिधि भाति करि ॥ कोई बूझै बूझणहारा अंतरि बिबेकु करि ॥ सो बूझै एहु बिबेकु जिसु बुझाए आपि हरि ॥ जनु नानकु कहै विचारा गुरमुखि हरि सति हरि ॥११॥

अर्थ: हे (बातों में) आए हुए शेख! इस मन को ठिकाने पर ला, टेढ़ी-मेढ़ी बातें छोड़ और सतिगुरु के शब्द को समझ। हे शेख! जो (सबका) जानकार सतिगुरु सब कुछ समझता है उसके चरणों में लग; आशाएं और मन की दौड़ मिटा के अपने आप को जगत में मेहमान समझ; अगर तू सतिगुरु की रजा में चलेगा तो ईश्वर की दरगाह में आदर पाएगा। हे नानक! जो मनुष्य नाम नहीं स्मरण करते, उनका (अच्छा) खाना और (अच्छा) पहनना सब धिक्कार है।1। हरि के गुण बयान करते हुए वे गुण समाप्त नहीं होते, और ना ही ये बताया जा सकता है कि इन गुणों की कीमत क्या है; (पर) हे नानक! गुरमुख हरि के गुण गाते हैं। (जो मनुष्य प्रभु के गुण गाता है वह) गुणों में लीन हुआ रहता है।2। (ये मानव) शरीर, जैसे, चोली है जो प्रभु ने बनाई है और भक्ति (-रूप का कसीदा) काढ़ के ये चोली पहनने योग्य बनती है। (इस चोली को) बहुत तरह के कई प्रकार के हरि-नाम के गोटे लगे हुए हैं; (इस भेद को) मन में विचार के कोई विरला ही समझने वाला समझता है। इस विचार को वही समझता है जिसे हरि खुद समझाए। नानक दास ये विचार बताता है कि सदा स्थिर रहने वाला हरि गुरु के द्वारा (स्मरण किया जा सकता है)।11।


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