संधिआ वेले का हुक्मनामा – 20 अक्टूबर 2024
सोरठि महला ५ ॥ खोजत खोजत खोजि बीचारिओ राम नामु ततु सारा ॥ किलबिख काटे निमख अराधिआ गुरमुखि पारि उतारा ॥१॥ हरि रसु पीवहु पुरख गिआनी ॥ सुणि सुणि महा त्रिपति मनु पावै साधू अम्रित बानी ॥ रहाउ ॥ मुकति भुगति जुगति सचु पाईऐ सरब सुखा का दाता ॥ अपुने दास कउ भगति दानु देवै पूरन पुरखु बिधाता ॥२॥ स्रवणी सुणीऐ रसना गाईऐ हिरदै धिआईऐ सोई ॥ करण कारण समरथ सुआमी जा ते ब्रिथा न कोई ॥३॥ वडै भागि रतन जनमु पाइआ करहु क्रिपा किरपाला ॥ साधसंगि नानकु गुण गावै सिमरै सदा गुोपाला ॥४॥१०॥
अर्थ: हे आत्मिक जीवन की समझ वाले मनुष्य! (सदा) परमात्मा का नाम-रस पीया कर। (हे भाई!) गुरू की आत्मिक जीवन देने वाली बाणी के द्वारा (परमात्मा का) नाम बार-बार सुन सुन के (मनुष्य का) मन सबसे ऊँचा संतोष हासल कर लेता है। रहाउ।
हे भाई! बड़ी लंबी खोज करके हम इस विचार पर पहुँचे हैं कि परमात्मा का नाम (-सिमरना ही मानस जन्म की) सबसे ऊँची अस्लियत है। गुरू की शरण पड़ के हरी का नाम सिमरने से (ये नाम) आँख झपकने जितने समय में (सारे) पाप काट देता है, और, (संसार-समुंद्र से) पार लंघा देता है।1।
हे भाई! सारे सुखों को देने वाला, सदा कायम रहने वाला परमात्मा अगर मिल जाए, तो यही है विकारों से खलासी (का मूल), यही है (आत्मा की) खुराक, यही है जीने का सच्चा ढंग। वह सर्व-व्यापक सृजनहार प्रभू-भक्ति का (ये) दान अपने सेवक को (ही) बख्शता है।2।
हे भाई! जिस जगत के मूल सब ताकतों के मालिक प्रभू के दर से कोई जीव खाली हाथ नहीं जाता, उस (के) ही (नाम) को कानों से सुनना चाहिए, हृदय में आराधना चाहिए।3।
हे गोपाल! हे कृपाल! बड़ी किस्मत से ये श्रेष्ठतम मानस जन्म मिला है (अब) मेहर कर, (तेरा सेवक) नानक साध-संगति में रह के तेरे गुण गाता रहे, तेरा नाम सदा सिमरता रहे।4।10।