अमृत वेले का हुक्मनामा – 15 अक्टूबर 2024
गूजरी महला ५ ॥*
*तूं समरथु सरनि को दाता दुख भंजनु सुख राइ ॥ जाहि कलेस मिटे भै भरमा निरमल गुण प्रभ गाइ ॥१॥ गोविंद तुझ बिनु अवरु न ठाउ ॥ करि किरपा पारब्रहम सुआमी जपी तुमारा नाउ ॥ रहाउ ॥ सतिगुर सेवि लगे हरि चरनी वडै भागि लिव लागी ॥ कवल प्रगास भए साधसंगे दुरमति बुधि तिआगी ॥२॥ आठ पहर हरि के गुण गावै सिमरै दीन दैआला ॥ आपि तरै संगति सभ उधरै बिनसे सगल जंजाला ॥३॥ चरण अधारु तेरा प्रभ सुआमी ओति पोति प्रभु साथि ॥ सरनि परिओ नानक प्रभ तुमरी दे राखिओ हरि हाथ ॥४॥२॥३२॥*