संधिआ वेले का हुक्मनामा – 11 अक्टूबर 2024

सलोक ॥ पतित पुनीत गोबिंदह सरब दोख निवारणह ॥ सरणि सूर भगवानह जपंति नानक हरि हरि हरे ॥१॥ छडिओ हभु आपु लगड़ो चरणा पासि ॥ नठड़ो दुख तापु नानक प्रभु पेखंदिआ ॥२॥ पउड़ी ॥ मेलि लैहु दइआल ढहि पए दुआरिआ ॥ रखि लेवहु दीन दइआल भ्रमत बहु हारिआ ॥ भगति वछलु तेरा बिरदु हरि पतित उधारिआ ॥ तुझ बिनु नाही कोइ बिनउ मोहि सारिआ ॥ करु गहि लेहु दइआल सागर संसारिआ ॥१६॥
☬ अर्थ हिंदी ☬
गोबिंद विकारियों को पवित्र करने वाला है। (पापियों के) सारे एैब दूर करने वाला है। हे नानक! जो मनुष्य उस प्रभू को जपते हैं, भगवान उन शरण आए हुओं की लाज रखने के समर्थ है।1।
जिस मनुष्य ने सारा स्वै भाव मिटा दिया, जो मनुष्य प्रभू के चरणों के साथ जुड़ा रहा, हे नानक! प्रभू का दीदार करने से उसके सारे दुख-कलेश नाश हो जाते हैं।2।
हे दयालु! मैं तेरे दर पर आ गिरा हूँ, मुझे (अपने चरणों में) जोड़ ले। हे दीनों पर दया करने वाले! मुझे रख ले, मैं भटकता-भटकता अब बहुत थक गया हूँ। भक्ति को प्यार करना और गिरे हुओं को बचाना- ये तेरा बिरद स्वभाव है। हे प्रभू! तेरे बिना और कोई नहीं जो मेरी इस विनती को सिरे चढ़ा सके। हे दयालु! मेरा हाथ पकड़ ले (और मुझे) संसार-समुंद्र में से बचा ले।16।


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