अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 5 अक्टूबर 2024

धनासरी महला ३ ॥*
*सदा धनु अंतरि नामु समाले ॥ जीअ जंत जिनहि प्रतिपाले ॥ मुकति पदारथु तिन कउ पाए ॥ हरि कै नामि रते लिव लाए ॥१॥ गुर सेवा ते हरि नामु धनु पावै ॥ अंतरि परगासु हरि नामु धिआवै ॥ रहाउ ॥ इहु हरि रंगु गूड़ा धन पिर होइ ॥ सांति सीगारु रावे प्रभु सोइ ॥ हउमै विचि प्रभु कोइ न पाए ॥ मूलहु भुला जनमु गवाए ॥२॥ गुर ते साति सहज सुखु बाणी ॥ सेवा साची नामि समाणी ॥ सबदि मिलै प्रीतमु सदा धिआए ॥ साच नामि वडिआई पाए ॥३॥ आपे करता जुगि जुगि सोइ ॥ नदरि करे मेलावा होइ ॥ गुरबाणी ते हरि मंनि वसाए ॥ नानक साचि रते प्रभि आपि मिलाए ॥४॥३॥*
*अर्थ: हे भाई! नाम धन को अपने अंदर संभाल कर रख। उस परमात्मा का नाम (ऐसा) धन (है जो) सदा साथ निभाता है, जिस परमात्मा ने सारे जीवों की पालना (करने की ज़िम्मेदारी) ली हुई है। हे भाई! विकारों को ख़त्म करने वाला नाम-धन उन मनुष्यों को मिलता है, जो सुरत जोड़ कर परमात्मा के नाम (-रंग) में रंगे रहते हैं ॥१॥ हे भाई! गुरू की (बताई) सेवा करने से (मनुष्य) परमात्मा का नाम-धन हासिल कर लेता है। जो मनुष्य परमात्मा का नाम सिमरता है, उस के अंदर (आत्मिक जीवन की) समझ पैदा हो जाती है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! प्रभू-पती (के प्रेम) का यह गहरा रंग उस जीव-स्त्री को चढ़ता है, जो (आत्मिक) शांति को (अपने जीवन का) आभूषण बनाती है, वह जीव-स्त्री उस प्रभू को हर समय हृदय में बसाई रखती है। परन्तु अहंकार में (रह कर) कोई भी जीव परमात्मा को नहीं मिल सकता। अपने जिंद-दाते को भुला हुआ मनुष्य अपना मनुष्या जन्म व्यर्थ गंवा जाता है ॥२॥ हे भाई! गुरू से (मिली) बाणी की बरकत से आत्मिक शांति प्राप्त होती है, आत्मिक अडोलता का आनंद मिलता है। (गुरू की बताई) सेवा सदा साथ निभने वाली चीज़ है (इस की बरकत से परमातमा के) नाम में लीनता हो जाती है। जो मनुष्य गुरू के श़ब्द में जुड़ा रहता है, वह प्रीतम-प्रभू को सदा सिमरता रहता है। सदा-थिर प्रभू के नाम में लीन हो कर (परलोक में) इज़्ज़त मिलती है ॥३॥ जो करतार प्रत्येक जुग में आप ही (मौजूद चला आ रहा) है। वह (जिस मनुष्य ऊपर मेहर की) निगाह करता है (उस मनुष्य का उस से) मिलाप हो जाता है। वह मनुष्य गुरू की बाणी की बरकत से परमातमा को अपने मन में वसा लेता है। हे नानक जी! जिन मनुष्यों को प्रभू ने आप (अपने चरणों में) मिलाया है, वह उस सदा-थिर (के प्रेम-रंग) में रंगे रहते हैं ॥४॥३॥*


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