अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 29 सतंबर 2024

सोरठि महला ५ ॥
गई बहोड़ु बंदी छोड़ु निरंकारु दुखदारी ॥ करमु न जाणा धरमु न जाणा लोभी माइआधारी ॥ नामु परिओ भगतु गोविंद का इह राखहु पैज तुमारी ॥१॥ हरि जीउ निमाणिआ तू माणु ॥ निचीजिआ चीज करे मेरा गोविंदु तेरी कुदरति कउ कुरबाणु ॥ रहाउ ॥ जैसा बालकु भाइ सुभाई लख अपराध कमावै ॥ करि उपदेसु झिड़के बहु भाती बहुड़ि पिता गलि लावै ॥ पिछले अउगुण बखसि लए प्रभु आगै मारगि पावै ॥२॥ हरि अंतरजामी सभ बिधि जाणै ता किसु पहि आखि सुणाईऐ ॥ कहणै कथनि न भीजै गोबिंदु हरि भावै पैज रखाईऐ ॥ अवर ओट मै सगली देखी इक तेरी ओट रहाईऐ ॥३॥ होइ दइआलु किरपालु प्रभु ठाकुरु आपे सुणै बेनंती ॥ पूरा सतगुरु मेलि मिलावै सभ चूकै मन की चिंती ॥ हरि हरि नामु अवखदु मुखि पाइआ जन नानक सुखि वसंती ॥४॥१२॥६२॥

☬ अर्थ ☬
हे प्रभू! तूँ (आत्मिक जीवन की) लुप्त हो चुकी (रास-पूँजी) को वापिस दिलाने वाला हैं, तुँ (विकारों की) कैद से छुड़ाने वाला हैं, तेरा कोई खास स्वरूप बयान नहीं किया जा सकता, तूँ (जीवों को दुःख में धीरज देने वाला हैं। हे प्रभू! मैं कोई अच्छा कर्म कोई अच्छा धर्म करना नहीं जनता, मैं लोभ में फँसा रहता हूँ, मैं माया के मोह में ग्रस्त रहता हूँ। परन्तु हे प्रभू! मेरा नाम “गोबिंद का भगत” पड़ चुका है। सो, अब तूँ अपने नाम की आप लाज रख ॥१॥ हे प्रभू जी! तूँ उन लोगो को मान देता हैं, जिनका कोई मान नहीं करता। मैं तेरी ताकत से सदके जाता हूँ। हे भाई! मेरा गोबिंद नाकाम और नकारे गए लोगों को भी आदर के योग्य बना देता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जैसे कोई बच्चा अपनी लग्न अनुसार स्वभाव अनुसार लाखों गलतियाँ करता है, उस का पिता उस को शिक्षा दे दे कर कई तरीकों से झिड़कता भी है, परन्तु फिर अपने गल से (उस को) लगा लेता है, इसी तरह प्रभू-पिता भी जीवों के पिछले गुनाह बख़्श लेता है, और आगे के लिए (जीवन के) ठीक रास्ते पर पा देता है ॥२॥ हे भाई! परमात्मा प्रत्येक के दिल की जानने वाला है, (जीवों की) प्रत्येक (आत्मिक) हालत को जानता है। (उस को छोड़ कर) अन्य किस पास (अपनी हालत) कह कर सुनाई जा सकती है ? हे भाई! परमात्मा केवल जुबानी बातों से ख़ुश नहीं होता। (कार्या कर के जो मनुष्य) परमात्मा को अच्छा लग जाता है, उस की वह इज़्ज़त रख लेता है। हे प्रभू! मैं अन्य सभी आसरे देख लिए हैं, मैं एक तेरा आसरा ही रखा हुआ है ॥३॥ हे भाई! मालिक-प्रभू दयावान हो कर कृपाल हो कर आप ही (जिस मनुष्य की) बेनती सुन लेता है, उसको पूरा गुरू मिला देता है (इस तरह, उस मनुष्य के) मन की प्रत्येक चिंता ख़त्म हो जाती है। दास नानक जी! (कहो – गुरू जिस मनुष्य के) मुँह में परमात्मा की नाम-दवाई पा देता है, वह मनुष्य आत्मिक आनंद में जीवन बितीत करता है ॥४॥१२॥६२॥


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