अमृत वेले का हुक्मनामा – 2 सतंबर 2024
गूजरी महला ५ ॥ आपना गुरु सेवि सद ही रमहु गुण गोबिंद ॥ सासि सासि अराधि हरि हरि लहि जाइ मन की चिंद ॥१॥ मेरे मन जापि प्रभ का नाउ ॥ सूख सहज अनंद पावहि मिली निरमल थाउ ॥१॥ रहाउ ॥ साधसंगि उधारि इहु मनु आठ पहर आराधि ॥ कामु क्रोधु अहंकारु बिनसै मिटै सगल उपाधि ॥२॥ अटल अछेद अभेद सुआमी सरणि ता की आउ ॥ चरण कमल अराधि हिरदै एक सिउ लिव लाउ ॥३॥ पारब्रहमि प्रभि दइआ धारी बखसि लीन्हे आपि ॥ सरब सुख हरि नामु दीआ नानक सो प्रभु जापि ॥४॥२॥२८॥
अर्थ :-हे मेरे मन ! परमात्मा का नाम जपता रहो (सुमिरन की बरकत के साथ) सुख, आत्मिक अढ़ोलता, अनंद प्राप्त करेगा, तुझे वह जगह मिली रहेगी जो तुझे सदा पवित्र रख सके।1।रहाउ। हे भाई ! अपने गुरु की शरण में आकर सदा ही गोविंद के गुण याद करता रहु, अपनी हरेक साँस के साथ परमात्मा का आराधन करता रहु, तेरे मन की हरेक चिंता दूर हो जाएगी।1। हे भाई ! गुरु की संगत में टिक के अपने इस मन को (विकारों से) बचाई रख, आठो पहर परमात्मा का आराधन करता रहु, (तेरे अंदर से) काम क्रोध अहंकार नास हो जाएगा, तेरा हरेक रोग दूर हो जाएगा।2। हे भाई ! उस स्वामी-भगवान की शरण में टिका रहो जो सदा कायम रहने वाला है जो नास-रहित है जिस का भेद नहीं पाया जा सकता। हे भाई ! अपने हृदय में भगवान के सुंदर कोमल चरणों का आराधन करा कर, परमात्मा के चरणों के साथ प्रेम बनाए रख।3। हे भाई ! पारब्रह्म भगवान ने जिन मनुष्यों पर कृपा की उनको उस ने आप बख्श लिया (उन के पिछले पाप खिमा कर दिये) उनको उसने सारे सुखों का खजाना अपना हरि-नाम दे दिया। हे नानक ! (बोल-हे भाई !) तूँ भी उस भगवान का पवित्र नाम जपा कर।4।2।28।