संधिआ वेले का हुक्मनामा – 28 अगस्त 2024

धनासरी महला ५ ॥ जिह करणी होवहि सरमिंदा इहा कमानी रीति ॥ संत की निंदा साकत की पूजा ऐसी द्रिड़्ही बिपरीति ॥१॥ माइआ मोह भूलो अवरै हीत ॥ हरिचंदउरी बन हर पात रे इहै तुहारो बीत ॥१॥ रहाउ ॥ चंदन लेप होत देह कउ सुखु गरधभ भसम संगीति ॥ अम्रित संगि नाहि रुच आवत बिखै ठगउरी प्रीति ॥२॥ उतम संत भले संजोगी इसु जुग महि पवित पुनीत ॥ जात अकारथ जनमु पदारथ काच बादरै जीत ॥३॥ जनम जनम के किलविख दुख भागे गुरि गिआन अंजनु नेत्र दीत ॥ साधसंगि इन दुख ते निकसिओ नानक एक परीत ॥४॥९॥ {पन्ना 673}

अर्थ: हे भाई! माया के मोह (में फस के) तू गलत राह पर पड़ गया है, (परमात्मा को छोड़ के) और में प्यार डाल रहा है। तेरी अपनी विक्त तो इतनी ही है जितनी जंगल के हरे पक्तों की, जितनी आकाश में दिख रही हरीचंद की नगरी की।1। रहाउ।
हे भाई! जिन कामों से तू (परमात्मा की दरगाह में) शर्मिंदा होगा उन कामों को ही तू किए जा रहा है। तू संत जनों की निंदा करता रहता है, और, परमात्मा के साथ टूटे हुए मनुष्यों का आदर-सत्कार करता रहता है। तूने आश्चर्यजनक उल्टी मति ग्रहण की हुई है।1।
हे भाई! गधा मिट्टी में (लेटने से) खुद को सुखी समझता है, चाहे उसके शरीर पर चंदन का लेप करते रहें (यही हाल तेरा है) आत्मिक जीवन देने वाले नाम-जल से तेरा प्यार नहीं बनता। तू विषियों की ठॅग-बूटी से ही प्यार करता है।2।
हे भाई! ऊँचे जीवन वाले संत जो इस संसार (के विकारों) में भी पवित्र ही रहते हैं, भले संजोगों से ही मिलते हैं। (उनकी संगति से वंचित रह के) तेरा कीमती मानस जन्म व्यर्थ जा रहा है, काँच के बदले में जीता जा रहा है।3।
हे नानक! (कह– हे भाई!) जिस मनुष्य की आँखों में गुरू ने आत्मिक सूझ वाला सुरमा डाल दिया, उसके अनेकों जन्मों के किए पाप दूर हो गए। संगति में टिक के वह मनुष्य इन दुखों-पापों से बच निकला, उसने एक परमात्मा के साथ प्यार डाल लिया।4।9।


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