संधिआ वेले का हुक्मनामा – 24 जून 2024

सोरठि महला ९ ॥
इह जगि मीतु न देखिओ कोई ॥ सगल जगतु अपनै सुखि लागिओ दुख मै संगि न होई ॥१॥ रहाउ ॥ दारा मीत पूत सनबंधी सगरे धन सिउ लागे ॥ जब ही निरधन देखिओ नर कउ संगु छाडि सभ भागे ॥१॥ कहंउ कहा यिआ मन बउरे कउ इन सिउ नेहु लगाइओ ॥ दीना नाथ सकल भै भंजन जसु ता को बिसराइओ ॥२॥ सुआन पूछ जिउ भइओ न सूधउ बहुतु जतनु मै कीनउ ॥ नानक लाज बिरद की राखहु नामु तुहारउ लीनउ ॥३॥९॥

हे बही! इस जगत में कोई (अंत तक साथ निभाने वाला) मित्र (मैने) नहीं देखा। सारा संसार अपने सुख में ही जुटता पड़ा है। दुःख में (कोई किसी का) साथी नहीं बनता।१।रहाउ। हे भाई! स्त्री, मित्र, पुत्र, रिश्तेदार-यह सरे धन से (ही) मोह करते हैं। जब यह मनुख को कंगाल देखते हैं, (तभी) साथ छोड़ कर भाग जाते हैं।१।हे भाई! मैं इस पागल मन को क्या समझाऊँ? (इसने) इन (कच्चे साथियों) के साथ प्यार डाला हुआ है। (जो परमात्मा) गरीबों का रखवाला और सारे डर नाश करने वाला है उसकी सिफत सालाह (इसने) भुलाई हुई है।2। हे भाई! जैसे कुत्ते की पूँछ सीधी नहीं होती (इसी तरह इस मन की परमात्मा की याद के प्रति लापरवाही हटती नहीं) मैंने बहुत यत्न किया है। हे नानक! (कह– हे प्रभू! अपने) बिरदु भरे प्यार वाले स्वभाव की लाज रख (मेरी मदद कर, तो ही) मैं तेरा नाम जप सकता हूँ।3।9।


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