अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 24 जून 2024

सलोक मः ५ ॥ करि किरपा किरपाल आपे बखसि लै ॥ सदा सदा जपी तेरा नामु सतिगुर पाइ पै ॥ मन तन अंतरि वसु दूखा नासु होइ ॥ हथ देइ आपि रखु विआपै भउ न कोइ ॥ गुण गावा दिनु रैणि एतै कमि लाइ ॥ संत जना कै संगि हउमै रोगु जाइ ॥ सरब निरंतरि खसमु एको रवि रहिआ ॥ गुर परसादी सचु सचो सचु लहिआ ॥ दइआ करहु दइआल अपणी सिफति देहु ॥ दरसनु देखि निहाल नानक प्रीति एह ॥१॥ मः ५ ॥ एको जपीऐ मनै माहि इकस की सरणाइ ॥ इकसु सिउ करि पिरहड़ी दूजी नाही जाइ ॥ इको दाता मंगीऐ सभु किछु पलै पाइ ॥ मनि तनि सासि गिरासि प्रभु इको इकु धिआइ ॥ अम्रितु नामु निधानु सचु गुरमुखि पाइआ जाइ ॥ वडभागी ते संत जन जिन मनि वुठा आइ ॥ जलि थलि महीअलि रवि रहिआ दूजा कोई नाहि ॥ नामु धिआई नामु उचरा नानक खसम रजाइ ॥२॥ पउड़ी ॥ जिस नो तू रखवाला मारे तिसु कउणु ॥ जिस नो तू रखवाला जिता तिनै भैणु ॥ जिस नो तेरा अंगु तिसु मुखु उजला ॥ जिस नो तेरा अंगु सु निरमली हूं निरमला ॥ जिस नो तेरी नदरि न लेखा पुछीऐ ॥ जिस नो तेरी खुसी तिनि नउ निधि भुंचीऐ ॥ जिस नो तू प्रभ वलि तिसु किआ मुहछंदगी ॥ जिस नो तेरी मिहर सु तेरी बंदिगी ॥८॥

अर्थ: हे कृपालु (प्रभू)! मेहर कर, और तू स्वयं ही मुझे बख्श ले, सतिगुरू के चरणों में गिर के मैं सदा ही तेरा नाम जपता रहॅूँ।
(हे कृपालु!) मेरे मन में तन में आ बस (ता कि) मेरे दुख समाप्त हो जाएं; तू स्वयं मुझे अपना हाथ दे के रख, कोई डर मुझ पर अपना जोर ना डाल सके। (हे कृपालु!) मुझे इसी काम में लगाए रख कि मैं दिन-रात तेरे गुण गाता रहूँ, गुरमुखों की संगति में रह के मेरा अहंकार का रोग काटा जाए। (हे भाई! भले ही) पति-प्रभू सब जीवों में एक रस व्यापक है, पर उस सदा-स्थिर रहने वाले प्रभू को जिसने पाया है गुरू की मेहर से पाया है। हे दयालु प्रभू! दया कर, मुझे अपनी सिफत-सालाह बख्श, (मुझ) नानक की यही तमन्ना है कि तेरे दर्शन करके प्रफुल्लित रहूँ ॥१॥ एक प्रभू को ही मन में ध्याना चाहिए, एक प्रभू की ही शरण लेनी चाहिए। हे मन! एक प्रभू के साथ ही प्रेम डाल, उसके बिना और कोई जगह-ठिकाना नहीं है। एक प्रभू-दाते से ही माँगना चाहिए, हरेक चीज उसी से ही मिलती है। हे भाई! मन से शरीर से श्वास-श्वास खाते-पीते एक प्रभू को ही सिमर। प्रभू का आत्मिक जीवन देने वाला नाम सदा कायम रहने वाला खजाना गुरू के द्वारा ही मिलता है। वह गुरमुख लोग बड़े ही भाग्यों वाले हैं जिनके मन में प्रभू आ बसता है। प्रभू जल में धरती में आकाश में (हर जगह) मौजूद है, उसके बिना (कहीं भी) कोई और नहीं है। हे नानक! (अरदास कर कि) मैं भी उस प्रभू का नाम सिमरूँ, नाम (मुँह से) उचारूँ और उस पति-प्रभू की रजा में रहूँ ॥२॥ (हे प्रभू!) जिस मनुष्य को तू रक्षक मिला है, उसको कोई (विकार आदि) मार नहीं सकता, क्योंकि उसने तो (सारा) जगत (ही) जीत लिया है। (हे प्रभू!) जिसको तेरा आसरा प्राप्त है वह (मानवता की जिम्मेवारी में) सुर्खरू हो गया है, वह बड़े ही पवित्र जीवन वाला बन गया है। (हे प्रभू!) जिसको तेरी (मेहर की) नजर नसीब हुई है उसको (जिंदगी में किए कामों का) हिसाब नहीं पूछा जाता, क्योंकि हे प्रभू! जिसको तेरी खुशी प्राप्त हुई है उसने तेरे नाम-रूप नौ खजानों का आनंद ले लिया है। हे प्रभू! तू जिस व्यक्ति के पक्ष में है उसको किसी की मुथाजी नहीं रहती (क्योंकि) जिस पर तेरी मेहर है वह तेरी भक्ति करता है ॥८॥


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