संधिआ वेले का हुक्मनामा – 21 जून 2024
बेद पुरान सभै मत सुनि कै करी करम की आसा ॥ काल ग्रसत सभ लोग सिआने उठि पंडित पै चले निरासा ॥१॥ मन रे सरिओ न एकै काजा ॥ भजिओ न रघुपति राजा ॥१॥ रहाउ ॥ बन खंड जाइ जोगु तपु कीनो कंद मूलु चुनि खाइआ ॥ नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ ॥२॥ भगति नारदी रिदै न आई काछि कूछि तनु दीना ॥ राग रागनी डि्मभ होइ बैठा उनि हरि पहि किआ लीना ॥३॥ परिओ कालु सभै जग ऊपर माहि लिखे भ्रम गिआनी ॥ कहु कबीर जन भए खालसे प्रेम भगति जिह जानी ॥४॥३॥
☬ अर्थ हिंदी ☬
हे मन! तूने प्रकाश-स्वरूप परमात्मा का भजन नहीं किया, तुझसे ये एक काम भी (जो करने वाला था) नहीं हो सकता।1। रहाउ।
जिन समझदार लोगों ने वेद-पुराण आदि के सारे मत सुन-सुन के कर्म-काण्ड की आस रखी, (ये आशा रखी कि कर्म काण्ड से जीवन सँवरेगा), वे सारे (आत्मिक) मौत में ग्रसे ही रहे। पंडित लोग भी आशा पूरी हुए बिना ही उठ के चले गए (जगत त्याग गए)।1।
कई लोगों ने जंगलों में जा के योग साधना की, तप किए, गाजर-मूली आदि चुन-खा के गुजारा किया; जोगी, कर्म काण्डी, ‘अलख’ कहने वाले जोगी, मोनधारी- ये सारे जम के लेखे में ही लिखे गए (भाव, इनके साधन मौत के डर से बचा नहीं सकते)।2।
जिन मनुष्यों ने शरीर पर तो (धार्मिक चिन्ह) चक्र आदि लगा लिए हैं, पर प्रेमा-भक्ति उसके हृदय में पैदा नहीं हुई, राग-रागनियां तो गाता है पर निरी पाखण्ड की मूर्ति ही बना बैठा है, ऐसे मनुष्य को परमात्मा से कुछ नहीं मिलता।3।
सारे जगत पर काल का सहम पड़ा हुआ है, भरमी-ज्ञानी भी उसी ही लेखे में लिखे गए हैं (वे भी मौत के सहम में ही हैं)। हे कबीर! कह– जिन मनुष्यों ने प्रेमा-भक्ति करनी समझ ली है वह (मौत के सहम से) आजाद हो गए हैं।4।3।
शबद का भाव: परमात्मा का भजन ही मनुष्य के करने के योग्य काम है। यही मौत के सहम से बचाता है। कर्म-काण्ड, जोग, तप आदि सिमरन के मुकाबले में तुच्छ हैं।