ਅੰਗ : 673
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਤੁਮ ਦਾਤੇ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਨਾਇਕ ਖਸਮ ਹਮਾਰੇ ॥ ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਤੁਮ ਹੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਹੁ ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਤੁਮਰੇ ਧਾਰੇ ॥੧॥ ਜਿਹਵਾ ਏਕ ਕਵਨ ਗੁਨ ਕਹੀਐ ॥ ਬੇਸੁਮਾਰ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੋ ਅੰਤੁ ਨ ਕਿਨ ਹੀ ਲਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਹਮਾਰੇ ਖੰਡਹੁ ਅਨਿਕ ਬਿਧੀ ਸਮਝਾਵਹੁ ॥ ਹਮ ਅਗਿਆਨ ਅਲਪ ਮਤਿ ਥੋਰੀ ਤੁਮ ਆਪਨ ਬਿਰਦੁ ਰਖਾਵਹੁ ॥੨॥ ਤੁਮਰੀ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ਆਸਾ ਤੁਮ ਹੀ ਸਜਨ ਸੁਹੇਲੇ ॥ ਰਾਖਹੁ ਰਾਖਨਹਾਰ ਦਇਆਲਾ ਨਾਨਕ ਘਰ ਕੇ ਗੋਲੇ ॥੩॥੧੨॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਸਭ ਦਾਤਾਂ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਮਾਲਕ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਸਭਨਾਂ ਨੂੰ ਪਾਲਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਸਾਡਾ ਆਗੂ ਹੈਂ (ਜੀਵਨ-ਅਗਵਾਈ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ), ਤੂੰ ਸਾਡਾ ਖਸਮ ਹੈਂ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਹੀ ਇਕ ਇਕ ਛਿਨ ਸਾਡੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਅਸੀਂ (ਤੇਰੇ) ਬੱਚੇ ਤੇਰੇ ਆਸਰੇ (ਜੀਊਂਦੇ) ਹਾਂ।੧। ਹੇ ਅਣਗਿਣਤ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ! ਹੇ ਬੇਅੰਤ ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ! ਕਿਸੇ ਭੀ ਪਾਸੋਂ ਤੇਰੇ ਗੁਣਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਨਹੀਂ ਲੱਭਿਆ ਜਾ ਸਕਿਆ। (ਮਨੁੱਖ ਦੀ) ਇਕ ਜੀਭ ਨਾਲ ਤੇਰਾ ਕੇਹੜਾ ਕੇਹੜਾ ਗੁਣ ਦੱਸਿਆ ਜਾਏ?।੧।ਰਹਾਉ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਕ੍ਰੋੜਾਂ ਅਪਰਾਧ ਨਾਸ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਸਾਨੂੰ ਅਨੇਕਾਂ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ (ਜੀਵਨ-ਜੁਗਤਿ) ਸਮਝਾਂਦਾ ਹੈਂ। ਅਸੀਂ ਜੀਵ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸੂਝ ਤੋਂ ਸੱਖਣੇ ਹਾਂ, ਸਾਡੀ ਅਕਲ ਥੋੜੀ ਹੈ ਹੋਛੀ ਹੈ। (ਫਿਰ ਭੀ) ਤੂੰ ਆਪਣਾ ਮੁੱਢ-ਕਦੀਮਾਂ ਦਾ ਪਿਆਰ ਵਾਲਾ ਸੁਭਾਉ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਹੈਂ ॥੨॥ ਹੇ ਨਾਨਕ! ਆਖ-) ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਅਸੀ ਤੇਰੇ ਹੀ ਆਸਰੇ-ਪਰਨੇ ਹਾਂ, ਸਾਨੂੰ ਤੇਰੀ ਹੀ (ਸਹਾਇਤਾ ਦੀ) ਆਸ ਹੈ, ਤੂੰ ਹੀ ਸਾਡਾ ਸੱਜਣ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਹੀ ਸਾਨੂੰ ਸੁਖ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਦਇਆਵਾਨ! ਹੇ ਸਭ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ-ਜੋਗੇ! ਸਾਡੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰ, ਅਸੀ ਤੇਰੇ ਘਰ ਦੇ ਗ਼ੁਲਾਮ ਹਾਂ।੩।੧੨।
धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ सभ मधे जत कत पेखउ जाई ॥२॥ तुम्ह दइआल किरपाल क्रिपा निधि पतित पावन गोसाई ॥ कोटि सूख आनंद राज पाए मुख ते निमख बुलाई ॥३॥ जाप ताप भगति सा पूरी जो प्रभ कै मनि भाई ॥ नामु जपत त्रिसना सभ बुझी है नानक त्रिपति अघाई ॥४॥१०॥
अर्थ: (हे प्रभु! कृपा कर) मैं (तेरे) संतों की सेवा में (रह के, उनके लिए) पानी (ढोता रहूँ, उनको) पंखा (झलता रहूँ, उनके लिए आटा) पीसता रहूँ, और, हे गोबिंद! तेरी सिफत सलाह तेरे सुन गाता रहूँ। मेरे मन प्रतेक साँस के साथ (तेरा) नाम याद करता रहे, मैं तेरा यह नाम प्राप्त कर लूँ जो सुख शांति का खज़ाना है ॥१॥ हे मेरे खसम-प्रभु! (मेरे ऊपर) दया कर। हे मेरे ठाकुर! मुझे ऐसी अक्ल दो कि मैं सदा ही तेरा नाम सिमरता रहूँ ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभु! तेरी कृपा से (मेरे अंदर से) माया का मोह ख़त्म हो जाए, अहंकार दूर हो जाए, मेरी भटकना का नास हो जाए, मैं जहाँ जहाँ जा के देखूँ सब में मुझे तूँ आनंद-सरूप ही वसता दिखे ॥२॥ हे धरती के खसम! तूँ दयाल हैं, कृपाल हैं, तूँ दया का खज़ाना हैं, तूँ विकारियों को पवित्र करने वाले हैं। जब मैं आँख झमकण जितने समय के लिए मुँहों तेरा नाम उचारता हूँ, मुझे इस तरह जापता है कि मैं राज-भाग के करोड़ों सुख आनन्द प्रापत कर लिए हैं ॥३॥ वही जाप ताप वही भगती पूरन मानों, जो परमात्मा के मन में पसंद आती है। हे नानक जी! परमात्मा का नाम जपिया सारी त्रिसना खत्म हो जाती है, (माया वाले पदार्थों से) पूरन तौर से संतुस्टी हो जाती है ॥४॥१०
ਅੰਗ : 673
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਪਾਨੀ ਪਖਾ ਪੀਸਉ ਸੰਤ ਆਗੈ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਜਸੁ ਗਾਈ ॥ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਮਨੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਇਹੁ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਰਹੁ ਦਇਆ ਮੇਰੇ ਸਾਈ ॥ ਐਸੀ ਮਤਿ ਦੀਜੈ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੁਧੁ ਧਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਮੋਹੁ ਮਾਨੁ ਛੂਟੈ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਭਰਮਾਈ ॥ ਅਨਦ ਰੂਪੁ ਰਵਿਓ ਸਭ ਮਧੇ ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਜਾਈ ॥੨॥ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦਇਆਲ ਕਿਰਪਾਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਗੋਸਾਈ ॥ ਕੋਟਿ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਰਾਜ ਪਾਏ ਮੁਖ ਤੇ ਨਿਮਖ ਬੁਲਾਈ ॥੩॥ ਜਾਪ ਤਾਪ ਭਗਤਿ ਸਾ ਪੂਰੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਈ ॥ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸਭ ਬੁਝੀ ਹੈ ਨਾਨਕ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ॥੪॥੧੦॥
ਅਰਥ: (ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਹਰ ਕਰ) ਮੈਂ (ਤੇਰੇ) ਸੰਤਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਵਿਚ (ਰਹਿ ਕੇ, ਉਹਨਾਂ ਵਾਸਤੇ) ਪਾਣੀ (ਢੋਂਦਾ ਰਹਾਂ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ) ਪੱਖਾ (ਝੱਲਦਾ ਰਹਾਂ, ਉਹਨਾਂ ਵਾਸਤੇ ਆਟਾ) ਪੀਂਹਦਾ ਰਹਾਂ, ਤੇ, ਹੇ ਗੋਬਿੰਦ! ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਂਦਾ ਰਹਾਂ। ਮੇਰਾ ਮਨ ਹਰੇਕ ਸਾਹ ਦੇ ਨਾਲ (ਤੇਰਾ) ਨਾਮ ਚੇਤੇ ਕਰਦਾ ਰਹੇ, ਮੈਂ ਤੇਰਾ ਇਹ ਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਵਾਂ ਜੋ ਸੁਖ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ ਹੈ ॥੧॥ ਹੇ ਮੇਰੇ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ! (ਮੇਰੇ ਉੱਤੇ) ਦਇਆ ਕਰ। ਹੇ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ! ਮੈਨੂੰ ਇਹੋ ਜਿਹੀ ਅਕਲ ਬਖ਼ਸ਼ ਕਿ ਮੈਂ ਸਦਾ ਹੀ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਰਹਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ (ਮੇਰਾ ਅੰਦਰੋਂ) ਮਾਇਆ ਦਾ ਮੋਹ ਮੁੱਕ ਜਾਏ, ਅਹੰਕਾਰ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਏ, ਮੇਰੀ ਭਟਕਣਾ ਦਾ ਨਾਸ ਹੋ ਜਾਏ, ਮੈਂ ਜਿੱਥੇ ਕਿੱਥੇ ਜਾ ਕੇ ਵੇਖਾਂ, ਸਭਨਾਂ ਵਿਚ ਮੈਨੂੰ ਤੂੰ ਆਨੰਦ-ਸਰੂਪ ਹੀ ਵੱਸਦਾ ਦਿੱਸੇਂ ॥੨॥ ਹੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਖਸਮ! ਤੂੰ ਦਇਆਲ ਹੈਂ, ਕਿਰਪਾਲ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਦਇਆ ਦਾ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਵਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪਵਿੱਤ੍ਰ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਅੱਖ ਝਮਕਣ ਜਿਤਨੇ ਸਮੇ ਲਈ ਭੀ ਮੂੰਹੋਂ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਉਚਾਰਦਾ ਹਾਂ, ਮੈਨੂੰ ਇਉਂ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਰਾਜ-ਭਾਗ ਦੇ ਕ੍ਰੋੜਾਂ ਸੁਖ ਆਨੰਦ ਮਾਣ ਲਏ ਹਨ ॥੩॥ ਉਹੀ ਜਾਪ ਤਾਪ ਉਹੀ ਭਗਤੀ ਸਿਰੇ ਚੜ੍ਹੀ ਜਾਣੋ, ਜੇਹੜੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪਸੰਦ ਆਉਂਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਿਆਂ ਸਾਰੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, (ਮਾਇਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਵਲੋਂ) ਪੂਰੇ ਤੌਰ ਤੇ ਰੱਜ ਜਾਈਦਾ ਹੈ ॥੪॥੧੦॥
धनासरी महला १ ॥ जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥ तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥ हुकमी होइ निबेड़ु भरमु चुकाइसी जीउ ॥ गुरु भरमु चुकाए अकथु कहाए सच महि साचु समाणा ॥ आपि उपाए आपि समाए हुकमी हुकमु पछाणा ॥ सची वडिआई गुर ते पाई तू मनि अंति सखाई ॥ नानक साहिबु अवरु न दूजा नामि तेरै वडिआई ॥२॥ तू सचा सिरजणहारु अलख सिरंदिआ जीउ ॥ एकु साहिबु दुइ राह वाद वधंदिआ जीउ ॥ दुइ राह चलाए हुकमि सबाए जनमि मुआ संसारा ॥ नाम बिना नाही को बेली बिखु लादी सिरि भारा ॥ हुकमी आइआ हुकमु न बूझै हुकमि सवारणहारा ॥ नानक साहिबु सबदि सिञापै साचा सिरजणहारा ॥३॥ भगत सोहहि दरवारि सबदि सुहाइआ जीउ ॥ बोलहि अम्रित बाणि रसन रसाइआ जीउ ॥ रसन रसाए नामि तिसाए गुर कै सबदि विकाणे ॥ पारसि परसिऐ पारसु होए जा तेरै मनि भाणे ॥ अमरा पदु पाइआ आपु गवाइआ विरला गिआन वीचारी ॥ नानक भगत सोहनि दरि साचै साचे के वापारी ॥४॥ भूख पिआसो आथि किउ दरि जाइसा जीउ ॥ सतिगुर पूछउ जाइ नामु धिआइसा जीउ ॥ सचु नामु धिआई साचु चवाई गुरमुखि साचु पछाणा ॥ दीना नाथु दइआलु निरंजनु अनदिनु नामु वखाणा ॥ करणी कार धुरहु फुरमाई आपि मुआ मनु मारी ॥ नानक नामु महा रसु मीठा त्रिसना नामि निवारी ॥५॥२॥
अर्थ: हे प्रभू जी! तेरे नाम में (जुड़ कर) मेरे अंदर आतमिक जीवन पैदा होता है, मेरे मन में ख़ुश़ी पैदा होती है। हे भाई! परमात्मा का नाम सदा-थिर रहने वाला है, प्रभू गुणों (का ख़ज़ाना) है और धरती के जीवों के दिल की जानने वाला है। गुरू का बख़्श़ा ज्ञान बताता है कि सिरजनहार प्रभू बेअंत है, जिस ने यह सृष्टि पैदा की है, वही इस को नाश करता है। जब उस के हुक्म में भेजा हुआ (मौत का) निमंत्रण आता है तो कोई जीव (उस निमंत्रण को) मोड़ नहीं सकता। परमात्मा आप ही (जीवों को) पैदा कर के आप ही संभाल करता है, आप ही प्रत्येक जीव के सिर पर (उस के किए कार्य अनुसार) लेख लिखता है, आप ही (जीव को सही जीवन-मार्ग की) सूझ बख़्श़ता है। मालिक-प्रभू अपहुँच है, जीवों के ज्ञान-इंद्रियों की उस तक पहुँच नहीं हो सकती। हे नानक जी! (उस के द्वार पर अरदास करो, और कहो – हे प्रभू!) तेरी सदा कायम रहने वाली सिफ़त-सलाह कर के मेरे अंदर आतमिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी सिफ़त-सलाह बख़्श़) ॥१॥ हे प्रभू जी! तेरे बराबर का अन्य कोई नहीं है, (अन्य जो भी जगत में) आया है, (वह यहाँ से आखिर) चला जाएगा (तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं)। जिस मनुष्य की भटकना (गुरू) दूर करता है, प्रभू के हुक्म अनुसार उस के जन्म मरण के चक्र खत्म हो जाते हैं। गुरू जिस की भटकना दूर करता है, उस से उस परमात्मा की सिफ़त-सलाह करवाता है जिस के गुण बताए नहीं जा सकते। वह मनुष्य सदा-थिर प्रभू (की याद) में रहता है, सदा-थिर प्रभू (उस के हृदय में) प्रगट हो जाता है। वह मनुष्य रज़ा के मालिक-प्रभू का हुक्म पहचान लेता है (और समझ लेता है कि) प्रभू आप ही पैदा करता है और आप ही (अपने में) लीन कर लेता है। हे प्रभू! जिस मनुष्य ने तेरी सिफ़त- सलाह (की दात) गुरू से प्राप्त कर लई है, तूँ उस के मन में आ वसता हैं और अंत समय भी उस का मित्र बनता हैं। हे नानक जी! मालिक-प्रभू सदा कायम रहने वाला है, उस जैसा अन्य कोई नहीं। (उस के द्वार पर अरदास करो और कहो-) हे प्रभू! तेरे नाम से जुड़ने से (लोग परलोग में) आदर मिलता है ॥२॥ हे अदृष्ट रचनहार! तूँ सदा-थिर रहने वाला हैं और सब जीवों को पैदा करने वाला हैं। एक सिरजणहार ही (सारे जगत का) मालिक है, उस ने (जन्म और मरण) के दो रास्ते चलाएं हैं। (उसी की रज़ा अनुसार जगत में) झगड़ों की वृद्धि होती है। दोनों रास्ते प्रभू ने ही चलाएं हैं, सभी जीव उसी के हुक्म में हैं, (उसी के हुक्म अनुसार) जगत जमता और मरता रहता है। (जीव नाम को भुला कर माया के मोह का) ज़हर-रूप बोझ अपने सिर पर इक्कठा करी जाता है, (और यह नहीं समझता कि) परमात्मा के नाम के बिना अन्य कोई भी साथी-मित्र नहीं बन सकता। जीव (परमात्मा के) हुक्म अनुसार (जगत में) आता है, (पर माया के मोह में फंस कर उस) हुक्म को समझता नहीं। प्रभू आप ही जीव को अपने हुक्म अनुसार (सही रास्ते पा कर) संवारने के समर्थ है। हे नानक जी! गुरू के श़ब्द में जुड़ने से यह पहचान आती है कि जगत का मालिक सदा-थिर रहने वाला है और सब का पैदा करने वाला है ॥३॥ हे भाई! परमात्मा की भगती करने वाले मनुष्य परमात्मा की हज़ूरी में शोभा प्राप्त करते हैं, क्योंकि गुरू के श़ब्द की बरकत से वह अपने जीवन को सुंदर बना लेते हैं। वह मनुष्य आतमिक जीवन देने वाली बाणी अपनी जीभ से उचारते रहते हैं, जीव को उस बाणी से एक-रस कर लेते हैं। भगत-जन प्रभू के नाम से जीभ को रसा लेते हैं, नाम में जुड़ कर (नाम के लिए उनकी) प्यास बढ़ती है, गुरू के श़ब्द द्वारा वह प्रभू-नाम से सदके होते हैं (नाम की खातिर अन्य सभी शारीरिक सुख कुर्बान करते हैं। हे प्रभू! जब (भगत जन) तेरे मन को प्यारे लगते हैं, तब वह गुरू-पारस से स्पर्श कर के आप भी पारस हो जाते हैं (अन्यों को पवित्र जीवन देने योग्य हो जाते हैं)। जो मनुष्य आपा-भाव दूर करते हैं उनको वह आतमिक दर्जा मिल जाता है जहाँ आतमिक मौत असर नहीं कर सकती। परन्तु इस तरह कोई विरला ही गुरू के दिए ज्ञान की विचार करने वाला मनुष्य होता है। हे नानक जी! परमात्मा की भगती करने वाले मनुष्य सदा-थिर प्रभू के द्वार पर शोभा प्राप्त करते हैं, वह (अपने सारे जीवन में) सदा-थिर प्रभू के नाम का ही व्यपार करते हैं ॥४॥ जब तक मैं माया के लिए भुखा प्यासा रहता हूँ, तब तक मैं किसी भी तरह प्रभू के द्वार पर पहुँच नहीं सकता। (माया की तृष्णा दूर करने का इलाज) मैं जा कर अपने गुरू से पुछता हूँ (और उन की शिक्षा के अनुसार) मैं परमात्मा का नाम सिमरता हूँ (नाम ही तृष्णा दूर करता है)। गुरू की श़रण पड़ कर मैं सदा-थिर नाम सिमरता हूँ, सदा-थिर प्रभू (की सिफ़त-सलाह) उचारता हूँ, और सदा-थिर प्रभू के साथ सांझ पाता हूँ। मैं हर रोज़ उस प्रभू का नाम मुख से लेता हूँ जो दीनों का सहारा है जो दया का स्रोत है और जिस पर माया का असर नहीं पड़ सकता। परमात्मा ने जिस मनुष्य को अपनी हज़ूरी से ही नाम सिमरन की करने-योग्य कार्य करने का हुक्म दे दिया, वह मनुष्य अपने मन को (माया की तरफ़ से) मार कर तृष्णा के असर से बच जाता है। हे नानक जी! उस मनुष्य को प्रभू का नाम ही मीठा और अन्य सभी रसों से श्रेष्ठ लगता है, उस ने नाम सिमरन की बरकत से माया की तृष्णा (अपने अंदर से) दूर कर ली होती है ॥५॥२॥
ਅੰਗ : 688
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ ਜੀਵਾ ਤੇਰੈ ਨਾਇ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਹੈ ਜੀਉ ॥ ਸਾਚੋ ਸਾਚਾ ਨਾਉ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦੁ ਹੈ ਜੀਉ ॥ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਅਪਾਰਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ਜਿਨਿ ਸਿਰਜੀ ਤਿਨਿ ਗੋਈ ॥ ਪਰਵਾਣਾ ਆਇਆ ਹੁਕਮਿ ਪਠਾਇਆ ਫੇਰਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥ ਆਪੇ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਲੇਖੈ ਆਪੇ ਸੁਰਤਿ ਬੁਝਾਈ ॥ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਜੀਵਾ ਸਚੀ ਨਾਈ ॥੧॥ ਤੁਮ ਸਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਆਇਆ ਜਾਇਸੀ ਜੀਉ ॥ ਹੁਕਮੀ ਹੋਇ ਨਿਬੇੜੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਸੀ ਜੀਉ ॥ ਗੁਰੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ਅਕਥੁ ਕਹਾਏ ਸਚ ਮਹਿ ਸਾਚੁ ਸਮਾਣਾ ॥ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਆਪਿ ਸਮਾਏ ਹੁਕਮੀ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਾ ॥ ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈ ਤੂ ਮਨਿ ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ॥ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਨਾਮਿ ਤੇਰੈ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥ ਤੂ ਸਚਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰੁ ਅਲਖ ਸਿਰੰਦਿਆ ਜੀਉ ॥ ਏਕੁ ਸਾਹਿਬੁ ਦੁਇ ਰਾਹ ਵਾਦ ਵਧੰਦਿਆ ਜੀਉ ॥ ਦੁਇ ਰਾਹ ਚਲਾਏ ਹੁਕਮਿ ਸਬਾਏ ਜਨਮਿ ਮੁਆ ਸੰਸਾਰਾ ॥ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਾਹੀ ਕੋ ਬੇਲੀ ਬਿਖੁ ਲਾਦੀ ਸਿਰਿ ਭਾਰਾ ॥ ਹੁਕਮੀ ਆਇਆ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਹੁਕਮਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਸਬਦਿ ਸਿਞਾਪੈ ਸਾਚਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥੩॥ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਦਰਵਾਰਿ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇਆ ਜੀਉ ॥ ਬੋਲਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣਿ ਰਸਨ ਰਸਾਇਆ ਜੀਉ ॥ ਰਸਨ ਰਸਾਏ ਨਾਮਿ ਤਿਸਾਏ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵਿਕਾਣੇ ॥ ਪਾਰਸਿ ਪਰਸਿਐ ਪਾਰਸੁ ਹੋਏ ਜਾ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਣੇ ॥ ਅਮਰਾ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਵਿਰਲਾ ਗਿਆਨ ਵੀਚਾਰੀ ॥ ਨਾਨਕ ਭਗਤ ਸੋਹਨਿ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਾਚੇ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀ ॥੪॥ ਭੂਖ ਪਿਆਸੋ ਆਥਿ ਕਿਉ ਦਰਿ ਜਾਇਸਾ ਜੀਉ ॥ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਛਉ ਜਾਇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਸਾ ਜੀਉ ॥ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਸਾਚੁ ਚਵਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੁ ਪਛਾਣਾ ॥ ਦੀਨਾ ਨਾਥੁ ਦਇਆਲੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਾ ॥ ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਧੁਰਹੁ ਫੁਰਮਾਈ ਆਪਿ ਮੁਆ ਮਨੁ ਮਾਰੀ ॥ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨਾਮਿ ਨਿਵਾਰੀ ॥੫॥੨॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ ਜੀ! ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਚ (ਜੁੜ ਕੇ) ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਪ੍ਰਭੂ ਗੁਣਾਂ (ਦਾ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ) ਹੈ ਤੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਜਾਣਨ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਦਾ ਬਖ਼ਸ਼ਿਆ ਗਿਆਨ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ਪ੍ਰਭੂ ਬੇਅੰਤ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੇ ਇਹ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਹੈ, ਉਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਨਾਸ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਉਸ ਦੇ ਹੁਕਮ ਵਿਚ ਭੇਜਿਆ ਹੋਇਆ (ਮੌਤ ਦਾ) ਸੱਦਾ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕੋਈ ਜੀਵ (ਉਸ ਸੱਦੇ ਨੂੰ) ਮੋੜ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਆਪ ਹੀ (ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ) ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਹੀ ਸੰਭਾਲ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਆਪ ਹੀ ਹਰੇਕ ਜੀਵ ਦੇ ਸਿਰ ਉਤੇ (ਉਸ ਦੇ ਕੀਤੇ ਕਰਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ) ਲੇਖ ਲਿਖਦਾ ਹੈ, ਆਪ ਹੀ (ਜੀਵ ਨੂੰ ਸਹੀ ਜੀਵਨ-ਰਾਹ ਦੀ) ਸੂਝ ਬਖ਼ਸ਼ਦਾ ਹੈ। ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਅਪਹੁੰਚ ਹੈ, ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਗਿਆਨ-ਇੰਦ੍ਰਿਆਂ ਦੀ ਉਸ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! (ਉਸ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰੋ, ਤੇ ਆਖੋ-ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ!) ਤੇਰੀ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰ ਕੇ ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਬਖ਼ਸ਼) ॥੧॥ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ ਜੀ! ਤੇਰੇ ਬਰਾਬਰ ਦਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੈ, (ਹੋਰ ਜੇਹੜਾ ਭੀ ਜਗਤ ਵਿਚ) ਆਇਆ ਹੈ, (ਉਹ ਇਥੋਂ ਆਖ਼ਰ) ਚਲਾ ਜਾਇਗਾ (ਤੂੰ ਹੀ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ)। ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਭਟਕਣਾ (ਗੁਰੂ) ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ ਉਸ ਦੇ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਜਿਸ ਦੀ ਭਟਕਣਾ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਪਾਸੋਂ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਗੁਣ ਬਿਆਨ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹਨ। ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ (ਦੀ ਯਾਦ) ਵਿਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ (ਉਸ ਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ) ਪਰਗਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਰਜ਼ਾ ਦੇ ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਹੁਕਮ ਪਛਾਣ ਲੈਂਦਾ ਹੈ (ਤੇ ਸਮਝ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਕਿ) ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪ ਹੀ (ਆਪਣੇ ਵਿਚ) ਲੀਨ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ (ਦੀ ਦਾਤਿ) ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਈ ਹੈ, ਤੂੰ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਆ ਵੱਸਦਾ ਹੈਂ ਤੇ ਅੰਤ ਸਮੇ ਭੀ ਉਸ ਦਾ ਸਾਥੀ ਬਣਦਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਉਸ ਵਰਗਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ। (ਉਸ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰੋ ਤੇ ਆਖੋ-) ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਚ ਜੁੜਿਆਂ (ਲੋਕ ਪਰਲੋਕ ਵਿਚ) ਆਦਰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ॥੨॥ ਹੇ ਅਦ੍ਰਿਸ਼ਟ ਰਚਨਹਾਰ! ਤੂੰ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ ਤੇ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਦਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਇਕੋ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ਹੀ (ਸਾਰੇ ਜਗਤ ਦਾ) ਮਾਲਕ ਹੈ, ਉਸ ਨੇ (ਜੰਮਣਾ ਤੇ ਮਰਨਾ) ਦੋ ਰਸਤੇ ਚਲਾਏ ਹਨ। (ਉਸੇ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਜਗਤ ਵਿਚ) ਝਗੜੇ ਵਧਦੇ ਹਨ। ਦੋਵੇਂ ਰਸਤੇ ਪ੍ਰਭੂ ਨੇ ਹੀ ਤੋਰੇ ਹਨ, ਸਾਰੇ ਜੀਵ ਉਸੇ ਦੇ ਹੁਕਮ ਵਿਚ ਹਨ, (ਉਸੇ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ) ਜਗਤ ਜੰਮਦਾ ਤੇ ਮਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। (ਜੀਵ ਨਾਮ ਨੂੰ ਭੁਲਾ ਕੇ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਦਾ) ਜ਼ਹਰ-ਰੂਪ ਭਾਰ ਆਪਣੇ ਸਿਰ ਉਤੇ ਇਕੱਠਾ ਕਰੀ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, (ਤੇ ਇਹ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦਾ ਕਿ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਭੀ ਸਾਥੀ-ਮਿੱਤਰ ਨਹੀਂ ਬਣ ਸਕਦਾ। ਜੀਵ (ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ) ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ (ਜਗਤ ਵਿਚ) ਆਉਂਦਾ ਹੈ, (ਪਰ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਫਸ ਕੇ ਉਸ) ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਸਮਝਦਾ ਨਹੀਂ। ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ ਜੀਵ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ (ਸਿੱਧੇ ਰਾਹ ਪਾ ਕੇ) ਸਵਾਰਨ ਦੇ ਸਮਰਥ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਵਿਚ ਜੁੜਿਆਂ ਇਹ ਪਛਾਣ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਜਗਤ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ ਤੇ ਸਭ ਦਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ ॥੩॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਬੰਦੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਵਿਚ ਸੋਭਦੇ ਹਨ, ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਉਹ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਸੋਹਣਾ ਬਣਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਬੰਦੇ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਬਾਣੀ ਆਪਣੀ ਜੀਭ ਨਾਲ ਉਚਾਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਜੀਵ ਨੂੰ ਉਸ ਬਾਣੀ ਨਾਲ ਇਕ-ਰਸ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਭਗਤ-ਜਨ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਜੀਭ ਨੂੰ ਰਸਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਨਾਮ ਵਿਚ ਜੁੜ ਕੇ (ਨਾਮ ਵਾਸਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ) ਪਿਆਸ ਵਧਦੀ ਹੈ, ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਉਹ ਪ੍ਰਭੂ-ਨਾਮ ਤੋਂ ਸਦਕੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ (ਨਾਮ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਹੋਰ ਸਭ ਸਰੀਰਕ ਸੁਖ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ)। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜਦੋਂ (ਭਗਤ ਜਨ) ਤੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪਿਆਰੇ ਲੱਗਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਉਹ ਗੁਰੂ-ਪਾਰਸ ਨਾਲ ਛੁਹ ਕੇ ਆਪ ਭੀ ਪਾਰਸ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ (ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ ਪਵਿਤ੍ਰ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਜੋਗੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ)। ਜੇਹੜੇ ਬੰਦੇ ਆਪਾ-ਭਾਵ ਦੂਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਉਹ ਆਤਮਕ ਦਰਜਾ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਥੇ ਆਤਮਕ ਮੌਤ ਅਸਰ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ। ਪਰ ਅਜੇਹਾ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਹੀ ਗੁਰੂ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ਗਿਆਨ ਦੀ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਬੰਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਬੰਦੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਸੋਭਾ ਪਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ (ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ) ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਦਾ ਹੀ ਵਣਜ ਕਰਦੇ ਹਨ ॥੪॥ ਜਦੋਂ ਤਕ ਮੈਂ ਮਾਇਆ ਵਾਸਤੇ ਭੁੱਖਾ ਪਿਆਸਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਤਦ ਤਕ ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਭੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। (ਮਾਇਆ ਦੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦਾ ਇਲਾਜ) ਮੈਂ ਜਾ ਕੇ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਪੁੱਛਦਾ ਹਾਂ (ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਅਨੁਸਾਰ) ਮੈਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਹਾਂ (ਨਾਮ ਹੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ)। ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈ ਕੇ ਮੈਂ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਹਾਂ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ (ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ) ਉਚਾਰਦਾ ਹਾਂ, ਤੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ ਸਾਂਝ ਪਾਂਦਾ ਹਾਂ। ਮੈਂ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਉਸ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਨਾਮ ਮੂੰਹੋਂ ਬੋਲਦਾ ਹਾਂ ਜੋ ਦੀਨਾਂ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਹੈ ਜੋ ਦਇਆ ਦਾ ਸੋਮਾ ਹੈ ਤੇ ਜਿਸ ਉਤੇ ਮਾਇਆ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਹੀਂ ਪੈ ਸਕਦਾ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਹੀ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਕਰਨ-ਜੋਗ ਕਾਰ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ (ਮਾਇਆ ਵਲੋਂ) ਮਾਰ ਕੇ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਤੋਂ ਬਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਨਾਮ ਹੀ ਮਿੱਠਾ* *ਤੇ ਹੋਰ ਸਭ ਰਸਾਂ ਨਾਲੋਂ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਲੱਗਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੇ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਮਾਇਆ ਦੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ (ਆਪਣੇ ਅੰਦਰੋਂ) ਦੂਰ ਕਰ ਲਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ॥੫॥੨॥
धनासरी महला ५ ॥ मेरा लागो राम सिउ हेतु ॥ सतिगुरु मेरा सदा सहाई जिनि दुख का काटिआ केतु ॥१॥ रहाउ ॥ हाथ देइ राखिओ अपुना करि बिरथा सगल मिटाई ॥ निंदक के मुख काले कीने जन का आपि सहाई ॥१॥ साचा साहिबु होआ रखवाला राखि लीए कंठि लाइ ॥ निरभउ भए सदा सुख माणे नानक हरि गुण गाइ ॥२॥१७॥
हे भाई (उस गुरु की कृपा से) मेरा परमात्मा के साथ प्यार बन गया है, वह गुरु मेरा भी सदा की लिए मददगार बन गया है, जिस गुरु ने (सरन आये हरेक मनुख का) पुच्शल वाला तारा ही सदा काट दिया है (जो गुरु हरेक सरन आये मनुख के दुःख की जड़ ही काट देता है)॥१॥ रहाउ॥ (हे भाई! वह परमात्मा अपने सेवकों को अपने) हाथ दे कर (दुखों से) बचाता है, (सेवकों को) अपना बना के उनका सारा दुःख-दर्द मिटा देता है। परमात्मा अपने सेवकों का आप मददगार बनता है, और, उनकी निंदा करने वालों के मुहं काले करता है॥१॥ सदा कायम रहने वाला मालिक (अपने सेवकों का आप) रखा बनता है, उनको अपने कंठ से लगा कर रखता है। हे नानक! परमात्मा के सेवक परमात्मा के गुण गा गा कर, और, सदा आत्मिक आनंद मना कर (दुखों क्लेशों से) सदा के लिए निडर हो जाते हैं॥२॥१७॥
ਅੰਗ : 675
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਮੇਰਾ ਲਾਗੋ ਰਾਮ ਸਿਉ ਹੇਤੁ ॥ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਜਿਨਿ ਦੁਖ ਕਾ ਕਾਟਿਆ ਕੇਤੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖਿਓ ਅਪੁਨਾ ਕਰਿ ਬਿਰਥਾ ਸਗਲ ਮਿਟਾਈ ॥ ਨਿੰਦਕ ਕੇ ਮੁਖ ਕਾਲੇ ਕੀਨੇ ਜਨ ਕਾ ਆਪਿ ਸਹਾਈ ॥੧॥ ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਹੋਆ ਰਖਵਾਲਾ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ॥ ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਸਦਾ ਸੁਖ ਮਾਣੇ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੨॥੧੭॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਭਾਈ! (ਉਸ ਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ) ਮੇਰਾ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ , ਉਹ ਗੁਰੂ ਮੇਰਾ ਭੀ ਸਦਾ ਲਈ ਮਦਦਗਾਰ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਗੁਰੂ ਨੇ (ਸਰਨ ਆਏ ਹਰੇਕ ਮਨੁੱਖ ਦਾ) ਬੋਦੀ ਵਾਲਾ ਤਾਰਾ ਹੀ ਸਦਾ ਕੱਟ ਦਿੱਤਾ ਹੈ (ਜੇਹੜਾ ਗੁਰੂ ਹਰੇਕ ਸਰਨ ਆਏ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਹੀ ਕੱਟ ਦੇਂਦਾ ਹੈ) ॥੧॥ ਰਹਾਉ॥ (ਹੇ ਭਾਈ! ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਆਪਣੇ ਸੇਵਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ) ਹੱਥ ਦੇ ਕੇ (ਦੁੱਖਾਂ ਤੋਂ) ਬਚਾਂਦਾ ਹੈ, (ਸੇਵਕਾਂ ਨੂੰ) ਆਪਣੇ ਬਣਾ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਾਰਾ ਦੁੱਖ-ਦਰਦ ਮਿਟਾ ਦੇਂਦਾ ਹੈ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਆਪਣੇ ਸੇਵਕਾਂ ਦਾ ਆਪ ਮਦਦਗਾਰ ਬਣਦਾ ਹੈ, ਤੇ, ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਮੂੰਹ ਕਾਲੇ ਕਰਦਾ ਹੈ ॥੧॥ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਮਾਲਕ (ਆਪਣੇ ਸੇਵਕਾਂ ਦਾ ਆਪ) ਰਾਖਾ ਬਣਦਾ ਹੈ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗਲ ਨਾਲ ਲਾ ਕੇ ਰੱਖਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਸੇਵਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਗੁਣ ਗਾ ਗਾ ਕੇ, ਤੇ, ਸਦਾ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਮਾਣ ਕੇ (ਦੁੱਖਾਂ ਕਲੇਸ਼ਾਂ ਵਲੋਂ) ਨਿਡਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ॥੨॥੧੭॥
ਜੋ ਇਸਤ੍ਰੀਆਂ ਆਪਣੇ ਜਤ, ਸਤ, ਇਖ਼ਲਾਕ ਵਿਚ ਪੂਰਨ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਉਪਰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਪਤੀ ਦੀ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਸੰਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਮਾਣ ਸਤਿਕਾਰ ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਤੇ ਪ੍ਰਮੇਸ਼ਰ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਆਪਣੀਆਂ ਬਖ਼ਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਦਾਰ ਮਿਸਦਾ ਹੈ। ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਐਸੀਆਂ ਅਨੇਕ ਬੀਬੀਆਂ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਲਗੀਧਰ ਜੀ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ (ਤਵਾਰੀਖ਼ ਗੁਰੂ ਖਾਲਸਾ) ਵਿਚ ਜ਼ਿਕਰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਵਾਰੀ । ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਭਰੇ ਇਕੱਠ ਵਿਚ ਬਚਨ ਕੀਤਾ, “ਕੋਈ ਐਸੀ ਬੀਬੀ ਹੈ ਜੋ ਮਨ, ਬਾਣੀ, ਸਰੀਰ ਕਰ ਕੇ ਪੂਰਨ ਜਤ-ਸਤ ਵਿਚ ਪ੍ਰਪੱਕ ਹੋਵੇ ਤੇ ਜਿਸ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਪਤੀ ਦਾ ਮੂੰਹ ਨਾ ਫਿਟਕਾਰਿਆ ਹੋਵੇ ? ਉਸ ਵੇਲੇ ਇਕ ਬੀਬੀ ਨੇ ਭਰੇ ਦੀਵਾਨ ਵਿਚ ਖਲੋ ਕੇ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ, ਗ਼ਰੀਬ ਨਿਵਾਜ਼ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ। ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਮੇਰੇ ‘ਤੇ ਰਹਿਮਤ ਹੈ। ਤੁਹਾਡੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਾਲ ਮੈਂ ਜਤ, ਸਤ ਵਿਚ ਪ੍ਰਪੱਕ ਹਾਂ ਅਤੇ ਅੱਜ ਤੱਕ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਪਤੀ ਦਾ ਮੂੰਹ ਨਹੀਂ ਫਿਟਕਾਰਿਆ। ਉਸ ਬੀਬੀ ਨੇ ਸਤਿਗੁਰਾਂ ਦੇ ਪੁੱਛਣ ‘ਤੇ ਸਾਰੀ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੀ ਵਾਰਤਾ ਦੱਸੀ ਕਿ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਜੀ ! ਅਸੀਂ ਕਈ ਭੈਣਾਂ ਸਾਂ, ਪਰ ਭਰਾ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਸਾਡੇ ਘਰ ਜਾਇਦਾਦ, ਪਦਾਰਥ ਬਹੁਤ ਸਨ। ਸਾਡੇ ਪਿਤਾ ਦੇ ਚੜਾਈ ਕਰਨ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਹਾਕਮਾਂ ਨੇ ਸਭ ਕੁਝ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਿਆ ਅਤੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜੋ ਇਸਤਰੀ (ਜੋ ਸਾਡੀ ਮਾਂ ਸੀ) ਦੇ ਪੇਟ ਵਿਚ ਬੱਚਾ ਹੈ, ਜੇਕਰ ਉਹ ਲੜਕਾ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਸਭ ਕੁਝ ਵਾਪਿਸ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ।
ਪ੍ਰਮੇਸ਼ਰ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਲੜਕਾ (ਸਾਡਾ ਭਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਸਭ ਕੁਝ ਵਾਪਿਸ ਮਿਲ ਗਿਆ। ਸਾਡੀ ਜਾਇਦਾਦ ਵੀ ਮਿਲ ਗਈ। ਪਹਿਲਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਦਿਨ ਕੱਟੀ ਕਰਦੇ ਸੀ। ਉਸ ਦੇ ਜਨਮ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਮਕਾਨ ਵੀ ਮਿਲ ਗਿਆ। ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੀ ! ਮੈਂ ਮਨ ਵਿਚ ਦ੍ਰਿੜ ਨਿਸਚਾ ਕਰ ਲਿਆ ਕਿ ਅੱਜ ਤੋਂ ਮੈਂ ਕਦੀ ਵੀ ਮਰਦ ਦਾ ਮੂੰਹ ਨਹੀਂ ਫਿਟਕਾਰਾਂਗੀ। ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਬੀਬੀ ਨੂੰ ਸ਼ਾਬਾਸ਼ ਦਿੱਤੀ ਤੇ ਬਹੁਤ ਬਖ਼ਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਕੀਤੀਆਂ। ਉਸ ਦੇ ਪਤੀਬ੍ਰਤਾ ਧਰਮ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਸੰਗਤਾਂ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਣ ਲਈ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਇਕ ਸੁੱਕਾ ਬੋਹੜ ਸੀ। ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਹੁਕਮ ਕੀਤਾ, ਬੇਟਾ ! ਜਾ ਉਸ ਸੁੱਕੇ ਬੋਹੜ ਥੱਲੇ ਪਰਦਾ ਕਰ ਕੇ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰ ਕੇ ਜਪੁ ਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਕਰ। ਉਸ ਬੀਬੀ ਨੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਬਚਨ ਮੰਨ ਕੇ ਜਦ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਉਹ ਸਕਿਆ ਬੋਹੜ ਵੀ ਹਰਾ ਹੋ ਗਿਆ।
(ਤਵਾਰੀਖ ਗੁਰੂ ਖਾਲਸਾ, ਭਾਗ ਪਹਿਲਾ, ਪੰਨਾ ੬੭੨,
सलोकु मः ३ ॥ रे जन उथारै दबिओहु सुतिआ गई विहाइ ॥ सतिगुर का सबदु सुणि न जागिओ अंतरि न उपजिओ चाउ ॥ सरीरु जलउ गुण बाहरा जो गुर कार न कमाइ ॥ जगतु जलंदा डिठु मै हउमै दूजै भाइ ॥ नानक गुर सरणाई उबरे सचु मनि सबदि धिआइ ॥१॥ मः ३ ॥ सबदि रते हउमै गई सोभावंती नारि ॥ पिर कै भाणै सदा चलै ता बनिआ सीगारु ॥ सेज सुहावी सदा पिरु रावै हरि वरु पाइआ नारि ॥ ना हरि मरै न कदे दुखु लागै सदा सुहागणि नारि ॥ नानक हरि प्रभ मेलि लई गुर कै हेति पिआरि ॥२॥ पउड़ी ॥ जिना गुरु गोपिआ आपणा ते नर बुरिआरी ॥ हरि जीउ तिन का दरसनु ना करहु पापिसट हतिआरी ॥ ओहि घरि घरि फिरहि कुसुध मनि जिउ धरकट नारी ॥ वडभागी संगति मिले गुरमुखि सवारी ॥ हरि मेलहु सतिगुर दइआ करि गुर कउ बलिहारी ॥२३॥
अर्थ: (मोह-रूप) उथारे के दबे हुए हे भाई ! (तेरी उम्र) सोते हुए ही गुजर गई है; सतिगुरु का शब्द सुन के तुझे जाग नहीं आई और ना ही हृदय में (नाम जपने का) चाव उपजा है। गुणों से विहीन शरीर सड़ जाए जो सतिगुरु की (बताई हुई) कार नहीं करता; (इस तरह का) संसार मैंने हऊमै में और माया के मोह में जलता हुआ देखा है। नानक जी! गुरु के शब्द के द्वारा सच्चे हरि को मन में सिमर के (जीव) सतिगुरु की शरण पड़ के (इस हऊमै में जलने से) बचते हैं ॥१॥ जिस की हऊमै सतिगुरु के शब्द में रंगे जाने से दूर हो जाती है वह (जीव-रूपी) नारी सोभावंती है; वह नारी अपने प्रभु-पती के हुक्म में सदा चलती है, इसी कारण उस का श्रृंगार सफल समझो। जिस जीव-स्त्री ने भगवान-पती को खोज लिया है, उस की (हृदय-रूप) सेज सुंदर है, क्योंकि उस को पती सदा मिला हुआ है, वह स्त्री सदा सुहाग वाली है क्योंकि उस का पती भगवान कभी मरता नहीं, (इस लिए) वह कभी दुखी नहीं होती। नानक जी! गुरु के प्यार में उस की बिरती होने के कारण भगवान ने उसे अपने साथ मिलाया है ॥२॥ पउड़ी ॥ जो मनुष्य प्यारे सतिगुरु की निन्दा करते हैं वह बहुत बुरे हैं,रब मेहर ही करे! हे भाई! उन का दर्शन ना करें, वह बड़े पापी और हतियारे हैं; मन से खोटे वह आदमी विभचारन स्त्री की तरह घर घर फिरते हैं। वडभागी मनुष्य सतिगुरु की निवाजी हुई गुरमुखों की संगत में मिलते हैं। हे हरी! मैं सदके हूँ सतिगुरु से, मेहर कर और सतिगुरु को मिला ॥२३॥
ਅੰਗ : 651
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥ ਰੇ ਜਨ ਉਥਾਰੈ ਦਬਿਓਹੁ ਸੁਤਿਆ ਗਈ ਵਿਹਾਇ ॥ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸੁਣਿ ਨ ਜਾਗਿਓ ਅੰਤਰਿ ਨ ਉਪਜਿਓ ਚਾਉ ॥ ਸਰੀਰੁ ਜਲਉ ਗੁਣ ਬਾਹਰਾ ਜੋ ਗੁਰ ਕਾਰ ਨ ਕਮਾਇ ॥ ਜਗਤੁ ਜਲੰਦਾ ਡਿਠੁ ਮੈ ਹਉਮੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਉਬਰੇ ਸਚੁ ਮਨਿ ਸਬਦਿ ਧਿਆਇ ॥੧॥ ਮਃ ੩ ॥ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਹਉਮੈ ਗਈ ਸੋਭਾਵੰਤੀ ਨਾਰਿ ॥ ਪਿਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਸਦਾ ਚਲੈ ਤਾ ਬਨਿਆ ਸੀਗਾਰੁ ॥ ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਸਦਾ ਪਿਰੁ ਰਾਵੈ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਨਾਰਿ ॥ ਨਾ ਹਰਿ ਮਰੈ ਨ ਕਦੇ ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਸਦਾ ਸੁਹਾਗਿਣ ਨਾਰਿ ॥ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਿ ਲਈ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰਿ ॥੨॥ ਪਉੜੀ ॥ ਜਿਨਾ ਗੁਰੁ ਗੋਪਿਆ ਆਪਣਾ ਤੇ ਨਰ ਬੁਰਿਆਰੀ ॥ ਹਰਿ ਜੀਉ ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਨਾ ਕਰਹੁ ਪਾਪਿਸਟ ਹਤਿਆਰੀ ॥ ਓਹਿ ਘਰਿ ਘਰਿ ਫਿਰਹਿ ਕੁਸੁਧ ਮਨਿ ਜਿਉ ਧਰਕਟ ਨਾਰੀ ॥ ਵਡਭਾਗੀ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਵਾਰੀ ॥ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸਤਿਗੁਰ ਦਇਆ ਕਰਿ ਗੁਰ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੨੩॥
ਅਰਥ: (ਮੋਹ-ਰੂਪ) ਉਥਾਰੇ ਦੇ ਦੱਬੇ ਹੋਏ ਹੇ ਭਾਈ! (ਤੇਰੀ ਉਮਰ) ਸੁੱਤਿਆਂ ਹੀ ਗੁਜ਼ਰ ਗਈ ਹੈ; ਸਤਿਗੁਰੂ ਦਾ ਸ਼ਬਦ ਸੁਣ ਕੇ ਤੈਨੂੰ ਜਾਗ ਨਹੀਂ ਆਈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ (ਨਾਮ ਜਪਣ ਦਾ) ਚਾਉ ਉਪਜਿਆ ਹੈ। ਗੁਣਾਂ ਤੋਂ ਸੱਖਣਾ ਸਰੀਰ ਸੜ ਜਾਏ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ (ਦੱਸੀ ਹੋਈ) ਕਾਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ; (ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ) ਸੰਸਾਰ ਮੈਂ ਹਉਮੈ ਵਿਚ ਤੇ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਸੜਦਾ ਵੇਖਿਆ ਹੈ। ਨਾਨਕ ਜੀ! ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਸੱਚੇ ਹਰੀ ਨੂੰ ਮਨ ਵਿਚ ਸਿਮਰ ਕੇ (ਜੀਵ) ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਪੈ ਕੇ (ਇਸ ਹਉਮੈ ਵਿਚ ਸੜਨ ਤੋਂ) ਬਚਦੇ ਹਨ ॥੧॥ ਜਿਸ ਦੀ ਹਉਮੈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਵਿਚ ਰੰਗੇ ਜਾਣ ਨਾਲ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਉਹ (ਜੀਵ-ਰੂਪੀ) ਨਾਰੀ ਸੋਭਾਵੰਤੀ ਹੈ; ਉਹ ਨਾਰੀ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਦੇ ਹੁਕਮ ਵਿਚ ਸਦਾ ਤੁਰਦੀ ਹੈ, ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦਾ ਸ਼ਿੰਗਾਰ ਸਫਲ ਸਮਝੋ। ਜਿਸ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੇ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਲੱਭ ਲਿਆ ਹੈ, ਉਸ ਦੀ (ਹਿਰਦੇ-ਰੂਪ) ਸੇਜ ਸੁੰਦਰ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਪਤੀ ਸਦਾ ਮਿਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ, ਉਹ ਇਸਤ੍ਰੀ ਸਦਾ ਸੁਹਾਗ ਵਾਲੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਦਾ ਪਤੀ ਪ੍ਰਭੂ ਕਦੇ ਮਰਦਾ ਨਹੀਂ, (ਇਸ ਲਈ) ਉਹ ਕਦੇ ਦੁਖੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ। ਨਾਨਕ ਜੀ! ਗੁਰੂ ਦੇ ਪਿਆਰ ਵਿਚ ਉਸ ਦੀ ਬ੍ਰਿਤੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਭੂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਇਆ ਹੈ ॥੨॥ ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਪਿਆਰੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਬਹੁਤ ਭੈੜੇ ਹਨ, ਰੱਬ ਮਿਹਰ ਹੀ ਕਰੇ! ਹੇ ਭਾਈ! ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦਰਸ਼ਨ ਨਾਹ ਕਰੋ, ਉਹ ਬੜੇ ਪਾਪੀ ਤੇ ਹੱਤਿਆਰੇ ਹਨ; ਮਨੋਂ ਖੋਟੇ ਉਹ ਆਦਮੀ ਵਿਭਚਾਰਨ ਇਸਤ੍ਰੀ ਵਾਂਗ ਘਰ ਘਰ ਫਿਰਦੇ ਹਨ। ਵਡਭਾਗੀ ਮਨੁੱਖ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਨਿਵਾਜੀ ਹੋਈ ਗੁਰਮੁਖਾਂ ਦੀ ਸੰਗਤ ਵਿਚ ਮਿਲਦੇ ਹਨ। ਹੇ ਹਰੀ! ਮੈਂ ਸਦਕੇ ਹਾਂ ਸਤਿਗੁਰੂ ਤੋਂ, ਮੇਹਰ ਕਰ ਤੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਨੂੰ ਮਿਲਾ ॥੨੩॥