संधिआ वेले का हुक्मनामा – 25 नवंबर 2024
धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ […]
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गूजरी महला ५ ॥ मात पिता भाई सुत बंधप तिन का बलु है थोरा ॥ अनिक रंग माइआ के पेखे किछु साथि न चालै भोरा ॥१॥ ठाकुर तुझ बिनु आहि न मोरा ॥ मोहि अनाथ निरगुन गुणु नाही मै आहिओ तुम्हरा धोरा ॥१॥ रहाउ ॥ बलि बलि बलि बलि चरण तुम्हारे ईहा ऊहा तुम्हारा जोरा […]
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जैतसरी महला ९ ॥ हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥ जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥ महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥ भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥ कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ उठि धाइआ […]
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सलोकु मः ४ ॥ अंतरि अगिआनु भई मति मधिम सतिगुर की परतीति नाही ॥ अंदरि कपटु सभु कपटो करि जाणै कपटे खपहि खपाही ॥ सतिगुर का भाणा चिति न आवै आपणै सुआइ फिराही ॥ किरपा करे जे आपणी ता नानक सबदि समाही ॥१॥ मः ४ ॥ मनमुख माइआ मोहि विआपे दूजै भाइ मनूआ थिरु नाहि […]
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बिहागड़ा महला ५ ॥ हरि चरण सरोवर तह करहु निवासु मना ॥ करि मजनु हरि सरे सभि किलबिख नासु मना ॥ करि सदा मजनु गोबिंद सजनु दुख अंधेरा नासे ॥ जनम मरणु न होइ तिस कउ कटै जम के फासे ॥ मिलु साधसंगे नाम रंगे तहा पूरन आसो ॥ बिनवंति नानक धारि किरपा हरि चरण […]
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धनासरी महला ५ ॥ जतन करै मानुख डहकावै ओहु अंतरजामी जानै ॥ पाप करे करि मूकरि पावै भेख करै निरबानै ॥१॥ जानत दूरि तुमहि प्रभ नेरि ॥ उत ताकै उत ते उत पेखै आवै लोभी फेरि ॥ रहाउ ॥ जब लगु तुटै नाही मन भरमा तब लगु मुकतु न कोई ॥ कहु नानक दइआल सुआमी […]
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धनासरी महला ५ ॥ तुम दाते ठाकुर प्रतिपालक नाइक खसम हमारे ॥ निमख निमख तुम ही प्रतिपालहु हम बारिक तुमरे धारे ॥१॥ जिहवा एक कवन गुन कहीऐ ॥ बेसुमार बेअंत सुआमी तेरो अंतु न किन ही लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ कोटि पराध हमारे खंडहु अनिक बिधी समझावहु ॥ हम अगिआन अलप मति थोरी तुम आपन […]
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वडहंसु महला ३ ॥ रसना हरि सादि लगी सहजि सुभाइ ॥ मनु त्रिपतिआ हरि नामु धिआइ ॥१॥ सदा सुखु साचै सबदि वीचारी ॥ आपणे सतगुर विटहु सदा बलिहारी ॥१॥ रहाउ ॥ अखी संतोखीआ एक लिव लाइ ॥ मनु संतोखिआ दूजा भाउ गवाइ ॥२॥ देह सरीरि सुखु होवै सबदि हरि नाइ ॥ नामु परमलु हिरदै रहिआ […]
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धनासरी महला ४ ॥ मेरे साहा मै हरि दरसन सुखु होइ ॥ हमरी बेदनि तू जानता साहा अवरु किआ जानै कोइ ॥ रहाउ ॥ साचा साहिबु सचु तू मेरे साहा तेरा कीआ सचु सभु होइ ॥ झूठा किस कउ आखीऐ साहा दूजा नाही कोइ ॥१॥ सभना विचि तू वरतदा साहा सभि तुझहि धिआवहि दिनु राति […]
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रागु सोरठि बानी भगत रविदास जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ दुलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेकै ॥ राजे इंद्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै ॥१॥ न बीचारिओ राजा राम को रसु ॥ जिह रस अन रस बीसरि जाही ॥१॥ रहाउ ॥ जानि अजान भए हम बावर सोच असोच […]
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