अमृत वेले का हुक्मनामा – 3 जनवरी 2025
सोरठि महला ५ घरु ३ चउपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मिलि पंचहु नही सहसा चुकाइआ ॥ सिकदारहु नह पतीआइआ ॥ उमरावहु आगै झेरा ॥ मिलि राजन राम निबेरा ॥१॥ अब ढूढन कतहु न जाई ॥ गोबिद भेटे गुर गोसाई ॥ रहाउ ॥ आइआ प्रभ दरबारा ॥ ता सगली मिटी पूकारा ॥ लबधि आपणी पाई ॥ […]
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सोरठि महला ५ घरु ३ चउपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मिलि पंचहु नही सहसा चुकाइआ ॥ सिकदारहु नह पतीआइआ ॥ उमरावहु आगै झेरा ॥ मिलि राजन राम निबेरा ॥१॥ अब ढूढन कतहु न जाई ॥ गोबिद भेटे गुर गोसाई ॥ रहाउ ॥ आइआ प्रभ दरबारा ॥ ता सगली मिटी पूकारा ॥ लबधि आपणी पाई ॥ […]
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रामकली महला ५ ॥ अंगीकारु कीआ प्रभि अपनै बैरी सगले साधे ॥ जिनि बैरी है इहु जगु लूटिआ ते बैरी लै बाधे ॥१॥ सतिगुरु परमेसरु मेरा ॥ अनिक राज भोग रस माणी नाउ जपी भरवासा तेरा ॥१॥ रहाउ ॥ चीति न आवसि दूजी बाता सिर ऊपरि रखवारा ॥ बेपरवाहु रहत है सुआमी इक नाम कै […]
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टोडी महला ५ ॥ हरि बिसरत सदा खुआरी ॥ ता कउ धोखा कहा बिआपै जा कउ ओट तुहारी ॥ रहाउ ॥ बिनु सिमरन जो जीवनु बलना सरप जैसे अरजारी ॥ नव खंडन को राजु कमावै अंति चलैगो हारी ॥१॥ गुण निधान गुण तिन ही गाए जा कउ किरपा धारी ॥ सो सुखीआ धंनु उसु जनमा […]
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सोरठि महला ५ ॥ सतिगुर पूरे भाणा ॥ ता जपिआ नामु रमाणा ॥ गोबिंद किरपा धारी ॥ प्रभि राखी पैज हमारी ॥१॥ हरि के चरन सदा सुखदाई ॥ जो इछहि सोई फलु पावहि बिरथी आस न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ क्रिपा करे जिसु प्रानपति दाता सोई संतु गुण गावै ॥ प्रेम भगति ता का मनु […]
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जैतसरी महला ५ ॥ आए अनिक जनम भ्रमि सरणी ॥ उधरु देह अंध कूप ते लावहु अपुनी चरणी ॥१॥ रहाउ ॥ गिआनु धिआनु किछु करमु न जाना नाहिन निरमल करणी ॥ साधसंगति कै अंचलि लावहु बिखम नदी जाइ तरणी ॥१॥ सुख स्मपति माइआ रस मीठे इह नही मन महि धरणी ॥ हरि दरसन त्रिपति नानक […]
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धनासरी महला ४ ॥ मेरे साहा मै हरि दरसन सुखु होइ ॥ हमरी बेदनि तू जानता साहा अवरु किआ जानै कोइ ॥ रहाउ ॥ साचा साहिबु सचु तू मेरे साहा तेरा कीआ सचु सभु होइ ॥ झूठा किस कउ आखीऐ साहा दूजा नाही कोइ ॥१॥ सभना विचि तू वरतदा साहा सभि तुझहि धिआवहि दिनु राति […]
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धनासरी महला ४ ॥ हरि हरि बूंद भए हरि सुआमी हम चात्रिक बिलल बिललाती ॥ हरि हरि क्रिपा करहु प्रभ अपनी मुखि देवहु हरि निमखाती ॥१॥ हरि बिनु रहि न सकउ इक राती ॥ जिउ बिनु अमलै अमली मरि जाई है तिउ हरि बिनु हम मरि जाती ॥ रहाउ ॥ तुम हरि सरवर अति अगाह […]
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सोरठि महला ९ ॥ प्रीतम जानि लेहु मन माही ॥ अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही ॥१॥ रहाउ ॥ सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै ॥ बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै ॥१॥ घर की नारि बहुतु हितु जा सिउ सदा रहत संग […]
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टोडी महला ५ ॥ हरि बिसरत सदा खुआरी ॥ ता कउ धोखा कहा बिआपै जा कउ ओट तुहारी ॥ रहाउ ॥ बिनु सिमरन जो जीवनु बलना सरप जैसे अरजारी ॥ नव खंडन को राजु कमावै अंति चलैगो हारी ॥१॥ गुण निधान गुण तिन ही गाए जा कउ किरपा धारी ॥ सो सुखीआ धंनु उसु जनमा […]
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