अमृत वेले का हुक्मनामा – 8 दसंबर 2023
सलोकु मः ४ ॥ गुरमुखि अंतरि सांति है मनि तनि नामि समाइ ॥ नामो चितवै नामु पड़ै नामि रहै लिव लाइ ॥ नामु पदारथु पाइआ चिंता गई बिलाइ ॥ सतिगुरि मिलिऐ नामु ऊपजै तिसना भुख सभ जाइ ॥ नानक नामे रतिआ नामो पलै पाइ ॥१॥ मः ४ ॥ सतिगुर पुरखि जि मारिआ भ्रमि भ्रमिआ घरु […]
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सोरठि महला १ ॥ जिन्ही सतिगुरु सेविआ पिआरे तिन्ह के साथ तरे ॥ तिन्हा ठाक न पाईऐ पिआरे अम्रित रसन हरे ॥ बूडे भारे भै बिना पिआरे तारे नदरि करे ॥१॥ भी तूहै सालाहणा पिआरे भी तेरी सालाह ॥ विणु बोहिथ भै डुबीऐ पिआरे कंधी पाइ कहाह ॥१॥ रहाउ ॥ सालाही सालाहणा पिआरे दूजा अवरु […]
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वडहंसु महला १ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ काइआ कूड़ि विगाड़ि काहे नाईऐ ॥ नाता सो परवाणु सचु कमाईऐ ॥ जब साच अंदरि होइ साचा तामि साचा पाईऐ ॥ लिखे बाझहु सुरति नाही बोलि बोलि गवाईऐ ॥ जिथै जाइ बहीऐ भला कहीऐ सुरति सबदु लिखाईऐ ॥ काइआ कूड़ि विगाड़ि काहे नाईऐ ॥१॥ ता मै कहिआ […]
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धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ […]
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धनासरी महला ५ घरु १२ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बंदना हरि बंदना गुण गावहु गोपाल राइ ॥ रहाउ ॥ वडै भागि भेटे गुरदेवा ॥ कोटि पराध मिटे हरि सेवा ॥१॥ चरन कमल जा का मनु रापै ॥ सोग अगनि तिसु जन न बिआपै ॥२॥ सागरु तरिआ साधू संगे ॥ निरभउ नामु जपहु हरि रंगे ॥३॥ […]
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धनासरी महला ५ घरु १२ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बंदना हरि बंदना गुण गावहु गोपाल राइ ॥ रहाउ ॥ वडै भागि भेटे गुरदेवा ॥ कोटि पराध मिटे हरि सेवा ॥१॥ चरन कमल जा का मनु रापै ॥ सोग अगनि तिसु जन न बिआपै ॥२॥ सागरु तरिआ साधू संगे ॥ निरभउ नामु जपहु हरि रंगे ॥३॥ […]
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सलोकु मः ३ ॥ पूरबि लिखिआ कमावणा जि करतै आपि लिखिआसु ॥ मोह ठगउली पाईअनु विसरिआ गुणतासु ॥ मतु जाणहु जगु जीवदा दूजै भाइ मुइआसु ॥ जिनी गुरमुखि नामु न चेतिओ से बहणि न मिलनी पासि ॥ दुखु लागा बहु अति घणा पुतु कलतु न साथि कोई जासि ॥ लोका विचि मुहु काला होआ अंदरि […]
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धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ […]
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धनासरी महला ५ ॥ जतन करै मानुख डहकावै ओहु अंतरजामी जानै ॥ पाप करे करि मूकरि पावै भेख करै निरबानै ॥१॥ जानत दूरि तुमहि प्रभ नेरि ॥ उत ताकै उत ते उत पेखै आवै लोभी फेरि ॥ रहाउ ॥ जब लगु तुटै नाही मन भरमा तब लगु मुकतु न कोई ॥ कहु नानक दइआल सुआमी […]
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धनासरी महला ५ ॥ जिनि तुम भेजे तिनहि बुलाए सुख सहज सेती घरि आउ ॥ अनद मंगल गुन गाउ सहज धुनि निहचल राजु कमाउ ॥१॥ तुम घरि आवहु मेरे मीत ॥ तुमरे दोखी हरि आपि निवारे अपदा भई बितीत ॥ रहाउ ॥ प्रगट कीने प्रभ करनेहारे नासन भाजन थाके ॥ घरि मंगल वाजहि नित वाजे […]
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