अमृत वेले का हुक्मनामा – 22 अप्रैल 2024
आसा महला ४ छंत ॥ वडा मेरा गोविंदु अगम अगोचरु आदि निरंजनु निरंकारु जीउ ॥ ता की गति कही न जाई अमिति वडिआई मेरा गोविंदु अलख अपार जीउ ॥ गोविंदु अलख अपारु अपर्मपरु आपु आपणा जाणै ॥ किआ इह जंत विचारे कहीअहि जो तुधु आखि वखाणै ॥ जिस नो नदरि करहि तूं अपणी सो गुरमुखि करे वीचारु जीउ ॥ वडा मेरा गोविंदु अगम अगोचरु आदि निरंजनु निरंकारु जीउ ॥१॥ तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता तेरा पारु न पाइआ जाइ जीउ ॥ तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि सभ महि रहिआ समाइ जीउ ॥ घट अंतरि पारब्रहमु परमेसरु ता का अंतु न पाइआ ॥ तिसु रूपु न रेख अदिसटु अगोचरु गुरमुखि अलखु लखाइआ ॥ सदा अनंदि रहै दिनु राती सहजे नामि समाइ जीउ ॥ तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता तेरा पारु न पाइआ जाइ जीउ ॥२॥ तूं सति परमेसरु सदा अबिनासी हरि हरि गुणी निधानु जीउ ॥ हरि हरि प्रभु एको अवरु न कोई तूं आपे पुरखु सुजानु जीउ ॥ पुरखु सुजानु तूं परधानु तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥ तेरा सबदु सभु तूंहै वरतहि तूं आपे करहि सु होई ॥ हरि सभ महि रविआ एको सोई गुरमुखि लखिआ हरि नामु जीउ ॥ तूं सति परमेसरु सदा अबिनासी हरि हरि गुणी निधानु जीउ ॥३॥ सभु तूंहै करता सभ तेरी वडिआई जिउ भावै तिवै चलाइ जीउ ॥ तुधु आपे भावै तिवै चलावहि सभ तेरै सबदि समाइ जीउ ॥ सभ सबदि समावै जां तुधु भावै तेरै सबदि वडिआई ॥ गुरमुखि बुधि पाईऐ आपु गवाईऐ सबदे रहिआ समाई ॥ तेरा सबदु अगोचरु गुरमुखि पाईऐ नानक नामि समाइ जीउ ॥ सभु तूंहै करता सभ तेरी वडिआई जिउ भावै तिवै चलाइ जीउ ॥४॥७॥१४॥
अर्थ :-(हे भाई !) मेरा गोविंद (सब से) बड़ा है (किसी सयानप के साथ उस तक मनुख की) पहुँच नहीं हो सकती, वह ज्ञान-इन्द्रियों की पहुँच से परे है, (सारे जगत का) मूल है, उस को माया की कालिख नहीं लग सकती, उस की कोई खास रूप नहीं बताया जा सकता। (हे भाई !) यह नहीं बताया जा सकता कि परमात्मा किस प्रकार का है, उस का बड़प्पन भी मापा नहीं जा सकता (हे भाई !) मेरा वह गोविंद ब्यान से बाहर है बयंत है। परे से परे है, अपने आप को वह ही जानता है। इन जीवों विचारिआँ की क्या समरथा है (कि उस का सवरूप बता सके) ? (हे भगवान ! कोई भी ऐसा जीव नहीं है) जो तेरी हस्ती को ब्यान कर के समझा सके। हे भगवान ! जिस मनुख के ऊपर तूँ अपनी कृपा की निगाह करता हैं, वह गुरु की शरण में आकर (तेरे गुणों की) विचार करता है। (हे भाई !) मेरा गोविंद (सब से) बड़ा है, (किसी सयानप के साथ उस तक मनुख की) पहुँच नहीं हो सकती, वह ज्ञान-इन्द्रियों की पहुँच से परे है, (सारे जगत का) मूल है उस को माया की कालिख नहीं लग सकती उस की कोई खास रूप नहीं बताया जा सकता।1। हे भगवान ! तूँ सारे जगत का मूल हैं और सर्व-व्यापक हैं, तूँ परे से परे हैं और सारी रचना का रचनहार हैं। तेरी हस्ती का पारला किनारा (किसी से) खोजा नहीं जा सकता। तूँ हरेक शरीर में मौजूद हैं, तूँ एक-रस सभी में समा रहा हैं। हे भाई ! पारब्रह्म परमेश्वर हरेक शरीर के अंदर मौजूद है उस के गुणों का अंत (कोई जीव) नहीं पा सकता। उस भगवान का कोई खास रूप कोई खास चिहन चक्र बताया नहीं जा सकता। वह भगवान (इन आँखों के साथ) दिखता नहीं वह ज्ञान-इन्द्रियों की पहुँच से परे है, गुरु के द्वारा ही यह समझ पड़ती है कि उस परमात्मा का सवरूप ब्यान नहीं किया जा सकता। (जो मनुख गुरु की शरण पड़ता (शरण में आता) है वह) दिन रात हर समय आत्मिक आनंद में मगन रहता है, परमात्मा के नाम में लीन रहता है। हे भगवान ! तूँ सारे जगत का मूल हैं और सर्व-व्यापक हैं, तूँ परे से परे हैं और सारी रचना का रचनहार हैं। तेरी हस्ती का पारला किनारा (किसी से) खोजा नहीं जा सकता।2। हे भगवान ! तूँ सदा कायम रहने वाला हैं तूँ सब से बड़ा हैं, तूँ कभी भी नास होने वाला नहीं हैं, तूँ सारे गुणों का खजाना हैं। हे हरि ! तूँ ही एक एक स्वामी हैं, तेरे बराबर का ओर कोई नहीं है तूँ आप ही सब के अंदर मौजूद हैं, तूँ आप ही सब के दिल की जानने वाला हैं। हे हरि ! तूँ सब में व्यापक हैं, तूँ घट घट की जानने वाला हैं, तूँ सब से शिरोमणी हैं, तेरे जितना ओर कोई नहीं है। हर जगह तेरा ही हुक्म चल रहा है, हर जगह तूँ ही तूँ मौजूद हैं, जगत में वही र्थोंड़ा साजो तूँ आप ही करता हैं। हे भाई ! सारी सृष्टि में एक वह परमात्मा ही रम रहा है, गुरु की शरण आने से उस परमात्मा के नाम की सूझ पड़ती है। हे भगवान ! तूँ सदा कायम रहने वाला हैं, तूँ सब से बड़ा हाकम हैं, तूँ कभी भी नास होने वाला नहीं हैं, तूँ सारे गुणों का खजाना हैं।3। हे करतार ! हर जगह तूँ ही तूँ हैं, सारी सृष्टि तेरे ही तेज-प्रताप का प्रकाश है। हे करतार ! जैसे तुझे अच्छा लगे, उसी प्रकार, (अपनी इस रचना को अपने हुक्म में) चला। हे करतार ! जैसे तुझे आप को अच्छा लगता है उसी प्रकार तूँ सृष्टि को कार्य लगा रहा हैं, सारी लोकाई तेरे ही हुक्म के अनुसार हो के चलती है। सारी लोकाई तेरे हुक्म में ही टिकी रहती है, जब तुझे अच्छा लगता है, तो तेरे हुक्म अनुसार ही (जीवों को) आदर-मान मिलता है। हे भाई ! अगर गुरु की शरण में आकर अच्छी समझ हासिल कर लऐ, अगर (अपने अंदर से) हऊमै-अहंकार दूर कर लऐ, तो गुर-शब्द की बरकत के साथ वह करतार हर जगह व्यापक दिखता है। हे नानक ! (बोल-हे करतार !) तेरा हुक्म जीवों के ज्ञान-इन्द्रियों की पहुँच से परे है (तेरे हुक्म की समझ) गुरु की शरण आने से प्राप्त होती है, (जिस मनुख को प्राप्त होती है वह तेरे) नाम में लीन हो जाता है। हे करतार ! हर जगह तूँ ही तूँ हैं, सारी सृष्टि तेरे ही तेज-प्रताप का प्रकाश है। हे करतार ! जैसे तुझे अच्छा लगे उसी प्रकार (अपनी इस सृष्टि को अपने हुक्म में) चला।4।7।14।