अमृत वेले का हुक्मनामा – 19 अप्रैल 2024
रागु सूही महला ५ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मिठ बोलड़ा जी हरि सजणु सुआमी मोरा ॥ हउ समलि थकी जी ओहु कदे न बोलै कउरा ॥ कउड़ा बोलि न जानै पूरन भगवानै अउगणु को न चितारे ॥ पतित पावनु हरि बिरदु सदाए इकु तिलु नही भंनै घाले ॥ घट घट वासी सरब निवासी नेरै ही ते नेरा ॥ नानक दासु सदा सरणागति हरि अम्रित सजणु मेरा ॥१॥
राग सूही में गुरु अर्जनदेव जी की बानी ‘ छन्त’। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे भाई! मेरा मालिक -प्रभु मीठे बोल बोलने वाला प्यारा मित्र है। मै याद कर कर के थक गयी हूँ (कि उस का कभी कडवा बोला बोल मुझे याद आ जाए, परन्तु) वेह कभी कडवा बोल नहीं बोलता। हे भाई! वेह सरे गुणों से भरपूर भगवन कडवा बोलना जानता ही नहीं, (क्योंकि वह हमारा) कोई भी अवगुण याद नहीं रखता। वह विकारिओं को पवित्र करने वाला है-यह उसका आरम्भ का सवभाव बताया जाता है, (और वह किसी की भी) की हुई किरत-कमाई को जरा भी व्यर्थ नहीं जाने देता। हे भाई! मेरा सजन हरेक सरीर मे बस्ता है, सब जीवों मे बस्ता है, हरेक जीव के अति निकट बस्ता है। दास नानक उस की सरन पड़ा रहता है। हे भाई! मेरा सजन प्रभु आत्मिक जीवन देने वाला है।१।