अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 17 जनवरी 2024

जैतसरी मः ४ ॥ हम बारिक कछूअ न जानह गति मिति तेरे मूरख मुगध इआना ॥ हरि किरपा धारि दीजै मति ऊतम करि लीजै मुगधु सिआना ॥१॥ मेरा मनु आलसीआ उघलाना ॥ हरि हरि आनि मिलाइओ गुरु साधू मिलि साधू कपट खुलाना ॥ रहाउ ॥ गुर खिनु खिनु प्रीति लगावहु मेरै हीअरै मेरे प्रीतम नामु पराना ॥ बिनु नावै मरि जाईऐ मेरे ठाकुर जिउ अमली अमलि लुभाना ॥२॥ जिन मनि प्रीति लगी हरि केरी तिन धुरि भाग पुराना ॥ तिन हम चरण सरेवह खिनु खिनु जिन हरि मीठ लगाना ॥३॥ हरि हरि क्रिपा धारी मेरै ठाकुरि जनु बिछुरिआ चिरी मिलाना ॥ धनु धनु सतिगुरु जिनि नामु द्रिड़ाइआ जनु नानकु तिसु कुरबाना ॥४॥३॥

अर्थ: हे भाई! हम तेरे नासमझ मूर्ख बच्चे हैं, हम नहीं जान सकते कि तूँ किस तरह का हैं, और कितना बड़ा हैं। हे हरी! मेहर कर के मुझे अच्छी अकल दो, मुझे मूर्ख को समझदार बना लो ॥१॥ हे भाई! मेरा सुस्त मन (माया की नींद में) सो गया था। परमात्मा ने मुझे गुरू लिया कर मिला दिया। गुरू को मिल कर (मेरे मन के) किवाड़ खुल गए हैं ॥ रहाउ ॥ हे गुरू! मेरे हृदय में प्रभू के लिए हर समय की प्रीत पैदा कर दो, मेरे प्रीतम-प्रभू का नाम मेरे प्राण बन जाएं। हे मालिक-प्रभू! जैसे नशा करने वाला मनुष्य नशे में ख़ुश़ रहता है (और नशे तो बिना घबरा जाता है, वैसे) तेरे नाम के बिना जिन्द व्याकुल हो जाती है ॥२॥ हे भाई! जिन मनुष्यों के मन में परमात्मा की प्रीत पैदा हो जाती है, उनके धुर दरगाह से मिले पिछले समय के भाग्य जाग जाते हैं। हे भाई! जिन मनुष्यों को परमात्मा प्यारा लगने लग जाता है, हम हर समय उनके चरणों की सेवा करते हैं ॥३॥ हे भाई! मेरे मालिक-प्रभू ने जिस मनुष्य पर मेहर की निगाह की, उस को बहुत समय से विछुड़े हुए को उस ने अपने साथ मिला लिया। धन्य है गुरू, धन्य है गुरू, जिस ने उस के हृदय में परमात्मा का नाम पक्का कर दिया। दास नानक जी उस गुरू से (सदा) कुर्बान जाते हैं ॥४॥३॥


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