अमृत वेले का हुक्मनामा – 15 दसंबर 2023
आसा बाणी भगत धंने जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
भ्रमत फिरत बहु जनम बिलाने तनु मनु धनु नही धीरे ॥ लालच बिखु काम लुबध राता मनि बिसरे प्रभ हीरे ॥१॥ रहाउ ॥ बिखु फल मीठ लगे मन बउरे चार बिचार न जानिआ ॥ गुन ते प्रीति बढी अन भांती जनम मरन फिरि तानिआ ॥१॥ जुगति जानि नही रिदै निवासी जलत जाल जम फंध परे ॥ बिखु फल संचि भरे मन ऐसे परम पुरख प्रभ मन बिसरे ॥२॥ गिआन प्रवेसु गुरहि धनु दीआ धिआनु मानु मन एक मए ॥ प्रेम भगति मानी सुखु जानिआ त्रिपति अघाने मुकति भए ॥३॥ जोति समाइ समानी जा कै अछली प्रभु पहिचानिआ ॥ धंनै धनु पाइआ धरणीधरु मिलि जन संत समानिआ ॥४॥१॥
अर्थ: राज आशा में भगत धन्य जी की वाणी। परमात्मा एक है और वह सच्चे गुरु की कृपा द्वारा ही मिलता है।
(माया के मोह में) भटकते हुए कई जनम गुजर जाते हैं, ये शरीर नाश हो जाता है, मन भटकता रहता है और धन भी टिका नहीं रहता। लोभी जीव जहर-रूपी पदार्थों की लालच में, काम-वासना में, रंगा रहता है, इसके मन में से अमोलक प्रभू बिसर जाता है। रहाउ।
हे कमले मन! ये जहर रूपी फल तुझे मीठे लगते हैं, तुझमें अच्छे विचार नहीं पनपते,गुणों से अलग और ही किस्म की प्रीति तेरे अंदर बढ़ रही है, और तेरे जनम-मरण का ताना तना जा रहा है।1। हे मन! अगर तूने जीवन की जुगति समझ के यह जुगति अपने अंदर पक्की ना की, तो तृष्णा में जलते हुए (तेरे अस्तित्व) को जमों का जाल, जमों के फाहे बर्बाद कर देंगे। हे मन! तू अब तक विषौ-रूप जहर के फल ही इकट्ठे करके संभालता रहा, और ऐसा संभालता रहा कि तुझे परम-पुरख प्रभू भूल गया।2। जिस मनुष्य को गुरू ने ज्ञान का प्रवेश-रूप धन दिया, उसकी सुरति प्रभू में जुड़ गई, उसके अंदर श्रद्धा बन गई, उसका मन प्रभू से एक-मेक हो गया; उसे प्रभू का प्यार, प्रभू की भक्ति अच्छी लगी, उसकी सुख से सांझ बन गई, वह माया की ओर से अच्छी तरह तृप्त हो गया, और बंधनों से मुक्त हो गया।3। जिस मनुष्य के अंदर प्रभू की सर्व-व्यापक ज्योति टिक गई, उसने माया में ना छले जाने वाले प्रभू को पहचान लिया। मैं धन्ने ने भी उस प्रभू का नाम-रूपी धन कोढूँढ लिया है जो सारी धरती का आसरा है; मैं धन्ना भी संत-जनों को मिल के प्रभू में लीन हो गया हूँ।4।1।