अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 26 नवंबर 2023

सूही महला ५ बैकुंठ नगरु जहा संत वासा ॥ प्रभ चरण कमल रिद माहि निवासा ॥१॥ सुणि मन तन तुझु सुखु दिखलावउ ॥ हरि अनिक बिंजन तुझु भोग भुंचावउ ॥१॥ रहाउ ॥ अम्रित नामु भुंचु मन माही ॥ अचरज साद ता के बरने न जाही ॥२॥ लोभु मूआ त्रिसना बुझि थाकी ॥ पारब्रहम की सरणि जन ताकी ॥३॥ जनम जनम के भै मोह निवारे ॥ नानक दास प्रभ किरपा धारे ॥४॥२१॥२७॥

हे भाई! जिस जगह (परमात्मा के संत जन बसते हैं, वोही जगह (असली) बैकुंठ की नगरी है। (संत जनों की संगत में रह कर) प्रभु के सुंदर चरण हृदय में आ बसते हैं।१। हे भाई! (मेरी बात) सुन, (आ,) मैं (तेरे) मन को तेरे तन को आत्मिक आनंद दिखा दूँ। प्रभु का नाम (मानों) अनकों सवादिष्ट भोजन हैं, (आयो, साध संगत में) मै तुम्हे स्वादिष्ट भोजन कराऊँ।१।रहाउ। हे भाई! (साध संगत मै रह कर) आत्मिक जीवन देने वाला हरी-नाम (भोजन) अपने मन मे खाया कर, इस भोजन के हैरान करने वाले स्वाद हैं, बयां नहीं किये जा सकते।२। हे भाई! जिन संत जनों ने (साध-संगत बैकुंठ मे आ कर) परमात्मा का सहारा देख लिया (उनके अंदर से) लोभ ख़तम हो जाता है, तृष्णा के अगन बुझ कर ख़तम हो जाती है।३। हे नानक! (कह-हे भाई!) प्रभु अपने दासों पर कृपा करता है, और उनके अनेकों जन्मो के डर मोह दूर कर देता है।४।२१।२७।


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top