अमृत वेले का हुक्मनामा – 30 सतंबर 2023
सलोकु मरदाना १ ॥ कलि कलवाली कामु मदु मनूआ पीवणहारु ॥ क्रोध कटोरी मोहि भरी पीलावा अहंकारु ॥ मजलस कूड़े लब की पी पी होइ खुआरु ॥ करणी लाहणि सतु गुड़ु सचु सरा करि सारु ॥ गुण मंडे करि सीलु घिउ सरमु मासु आहारु ॥ गुरमुखि पाईऐ नानका खाधै जाहि बिकार ॥१॥
कलयुगी सवभाव (मानो) (शराब निकालने वाली) मटकी है ; काम (मानो) शराब है और इस को पीने वाला (मनुख का) मन है। मोह से भरी हुए क्रोध की (मानो) टोकरी है और अहंकार (मानो) पिलाने वाला है। कूड़े लभ की (मानो) मजलिस है (जिस में बैठ कर) मन (काम की शराब को) पी पी कर खुआर (परेशान) होता है। अच्छी करनी को (शराब निकालने वाली) लाहन, सच बोलने को गुड बना कर सच्चे नाम को श्रेष्ठ शराब बना! गुणों को रोटी,, शीतल सवभाव को घी, शर्म को मास वाली (यह सारी) खुराक बना! हे नानक! यह खुराक सतगुरु के सन्मुख होने से मिलती है और इस के खाने से विकार दूर हो जाते हैं॥१॥