अमृत वेले का हुक्मनामा – 13 अगस्त 2023
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ रागु सूही बाणी सेख फरीद जी की ॥ तपि तपि लुहि लुहि हाथ मरोरउ ॥ बावलि होई सो सहु लोरउ ॥ तै सहि मन महि कीआ रोसु ॥ मुझु अवगन सह नाही दोसु ॥१॥ तै साहिब की मै सार न जानी ॥ जोबनु खोइ पाछै पछुतानी ॥१॥ रहाउ ॥ काली कोइल तू कित गुन काली ॥ अपने प्रीतम के हउ बिरहै जाली ॥ पिरहि बिहून कतहि सुखु पाए ॥ जा होइ क्रिपालु ता प्रभू मिलाए ॥२॥ विधण खूही मुंध इकेली ॥ ना को साथी ना को बेली ॥ करि किरपा प्रभि साधसंगि मेली ॥ जा फिरि देखा ता मेरा अलहु बेली ॥३॥ वाट हमारी खरी उडीणी ॥ खंनिअहु तिखी बहुतु पिईणी ॥ उसु ऊपरि है मारगु मेरा ॥ सेख फरीदा पंथु सम्हारि सवेरा ॥४॥१॥
अर्थ: अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है। राग सूही में सेख फरीद जी की बाणी। बड़ी दुखी हो कर, बड़ी तड़प के मैं अब हाथ मल रही हूँ, और कमली हो कर मैं अब उस खसम प्रभु को खोज रही हूँ। हे खसम-प्रभु! तभी तूने अपने मन में मेरे से रोस किया। तेरा कोई दोष (मेरी इस बुरी हालत बारे) नहीं है, मेरे में ही औगुण थे ॥१॥ हे मेरे मालिक मैंने तेरी कदर न जानी। जवानी का समय गँवा कर अब में पछ्ता रही हूँ ॥१॥ रहाउ ॥ (अब मैं काली कोयल से पूछती फिर रही हूँ-) हे काली कोयल! भला, मैं तो अपने कर्मों की मारी दुखी हूँ ही) तूँ भी क्यों काली (हो गयी) है ? (कोयल भी यही उत्तर देती है) मुझे मेरे प्रीतम के विछोड़े ने जला दिया है। (ठीक है) खसम से विछुड़ कर कहाँ कोई सुख पा सकती है ? (पर जीव-स्त्री के वस की बात नहीं) जब प्रभु आप मेहरबान होता है तो आप ही मिला लेता है ॥२॥ (इस जगत-रूप) डरावनी खूही में जीव-स्त्री अकेली (गिरी पड़ी थी, यहाँ) कोई मेरा साथी नहीं (मेरे दुःखों में) कोई मेरा मददगार नहीं। अब जब प्रभू ने मेहर कर के मुझे सतसंग में मिलाया है, (सतसंग में आ कर) जब मैं देखती हूँ तो मुझे मेरा रब मित्र दिख रहा है ॥३॥ हे भाई! हमारा यह जीवन-मारग बड़ा भयानक है, खंडे से तिखा है, बड़ी तेज़ धार वाला है। इस के उपरों हमें चलना है। इस लिए, हे फरीद जी! सुबह सुबह रस्ता संभाल ॥४॥१॥