अमृत वेले का हुक्मनामा – 5 जुलाई 2023
तिलंग मः १ ॥ इआनड़ीए मानड़ा काइ करेहि ॥ आपनड़ै घरि हरि रंगो की न माणेहि ॥ सहु नेड़ै धन कमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥ भै कीआ देहि सलाईआ नैणी भाव का करि सीगारो ॥ ता सोहागणि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥ इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥ करण पलाह करे बहुतेरे सा धन महलु न पावै ॥ विणु करमा किछु पाईऐ नाही जे बहुतेरा धावै ॥ लब लोभ अहंकार की माती माइआ माहि समाणी ॥ इनी बाती सहु पाईऐ नाही भई कामणि इआणी ॥२॥ जाइ पुछहु सोहागणी वाहै किनी बाती सहु पाईऐ ॥ जो किछु करे सो भला करि मानीऐ हिकमति हुकमु चुकाईऐ ॥ जा कै प्रेमि पदारथु पाईऐ तउ चरणी चितु लाईऐ ॥ सहु कहै सो कीजै तनु मनो दीजै ऐसा परमलु लाईऐ ॥ एव कहहि सोहागणी भैणे इनी बाती सहु पाईऐ ॥३॥ आपु गवाईऐ ता सहु पाईऐ अउरु कैसी चतुराई ॥ सहु नदरि करि देखै सो दिनु लेखै कामणि नउ निधि पाई ॥ आपणे कंत पिआरी सा सोहागणि नानक सा सभराई ॥ ऐसै रंगि राती सहज की माती अहिनिसि भाइ समाणी ॥ सुंदरि साइ सरूप बिचखणि कहीऐ सा सिआणी ॥४॥२॥४॥
अर्थ: हे बहुत अनजान जिंदे! इतना बेकार मान तूँ क्यों करती हैं ? परमात्मा तेरे अपने ही ह्रदय-घर में है, तूँ उस (के मिलाप) का आनंद क्यों नहीं मानती ? हे भोली जीव-स्त्री! पती-प्रभू (तेरे अंदर ही तेरे) नजदीक वस रहा है, तूँ (जंगल आदि) बाहरी संसार क्यों खोजती फिर रही हैं ? (अगर तुमने उस का दीदार करना है, तो अपनी ज्ञान की) आँखों में (प्रभू के) डर-अदब (के सुरमे) की सिलाई डाल, प्रभू के प्यार का हार-सिंगार कर। जीव-स्त्री तब ही सुहाग भाग्य वाली और प्रभू-चरणों में जुड़ी हुई समझी जाती है, जब प्रभू-पती उस से प्यार करे ॥१॥ (परन्तु) अनजान जीव-स्त्री भी क्या कर सकती है अगर वह जीव-स्त्री खसम-प्रभू को अच्छी ही ना लगे ? ऐसी जीव-स्त्री चाहे कितने ही तरले करे, वह पती-प्रभू का महल-घर ढूंढ ही नहीं सकती। (असल बात यह है कि) जीव-स्त्री चाहे कितनी ही दौड़-भज करे, प्रभू की मेहर की निगाह के बिना कुछ भी हासिल नहीं होता। अगर जीव-स्त्री जीभ के चसके लालच और अंहकार (आदि) में ही मस्त रहे, और सदा माया (के मोह) में डुबी रहे, तो इन बातों से खसम प्रभू नहीं मिलता। वह जीव-स्त्री अनजान ही रही (जो विकारों में भी मस्त रहे और फिर भी समझे कि वह पती-प्रभू को प्रसन्न कर सकती है) ॥२॥ (जिन को पती-प्रभू मिल गया है, चाहे) उन सुहाग भाग्य वालियों को जा कर पुछ देखो कि किन बातों से खसम-प्रभू मिलता है, (वह यहीं उत्तर देती हैं कि) चलाकी और धक्का छोड़ दो, जो कुछ प्रभू करता है उस को अच्छा समझ कर (सिर माथे पर) मानों, जिस प्रभू के प्रेम का सदका नाम-वस्त मिलती है उस के चरणों में मन जोड़ों, खसम-प्रभू जो हुक्म करता है वह करो, अपना शरीर और मन उस के हवाले करो, बस! यह सुगंधि (जिंद के लिए) प्रयोग करो। सुहाग भाग्य वालीं यह कहती हैं कि हे बहन! इन्हीं बातों से* *खसम-प्रभू मिलता है ॥३॥ खसम-प्रभू तब ही मिलता है जब आपा-भाव दूर करिए। इस के बिना कोई अन्य यत्न व्यर्थ चलाकी है। (जिंदगी का) वह दिन सफल मानों जब पती-प्रभू मेहर की निगाह से देखे, (जिस) जीव-स्त्री (तरफ़ मेहर की) निगाह करता है वह मानों नौ ख़ज़ानें ढूंढ लेती है। हे नानक जी! जो जीव-स्त्री अपने खसम-प्रभू को प्यारी है वह सुहाग भाग्य वाली है वह (जगत-) परिवार में आदर-मान प्राप्त करती है। जो प्रभू के प्यार-रंग में रंगी रहती है, जो अडोलता में मस्त रहती है, जो दिन रात प्रभू के प्रेम में मगन रहती है, वही सुंदर है सुंदर रूप वाली है अकल वाली है और समझदार कही जाती है ॥४॥२॥४॥